Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगा 8 अप्पयरसंकामया असंखेजगुणा। ६५७८. कुदो ? छावद्विसागरोवममेत्तवेदयसम्मत्तकालब्भंतरसंचयावलंबणादो । * सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं सव्वत्थोवा अवत्तव्वसंकामया। ६ ५७६. कुदो १ एयसमयसंचयावलंबणादो। * भुजगारसंकामया असंखेजगुणा। ६ ५८०. कुदो ? अंतोमुहुत्तसंचिदत्तादो। * अप्पयरसंकामया असंखेजगुणा ।
६५८१. कुदो १ सम्मामिच्छत्तस्स उव्वेल्लमाणमिच्छाइट्ठीहिं सह छावहिसागरो. वमकालभंतरसंचिदवेदयसम्माइद्विरासिस्स सम्मत्तस्स वि पलिदोवमासंखेजभागमेत्तव्वेल्लणकालभंतरसंकलिदरासिस्स गहणादो ।
* सोलसकसाय-भय-दुगुंछाणं सव्वत्थोवा अवत्तव्वसंकामया।
६ ५८२. कुदो ? अणंताणुबंधीणं विसंजोयणापुवसंजोगे वट्टमाणाणमयसमयसंचिदं पलिदो० असंखे०भागमेत्तजीवाणं सेसाणं च सव्वोवसामणापडिवादपढमसमए पयट्टमाणसंखेजोवसामयजीवाणं गहणादो।
* अवढिदसंकामया अर्णतगुणा।
* उनसे अल्पतर संक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं।
$ ५७८. क्योंकि छयासठ सागरप्रमाण वेदकसम्यक्त्वके कालके भीतर हुए सञ्चयका यहाँ अवलम्बन लिया गया है।
* सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके अबक्तव्यसंक्रामक जीव सबसे स्तोक हैं। ६५७६. क्योंकि यहाँ पर एक समयके सञ्चयका अवलम्बन लिया गया है। * उनसे भुजगारसंक्रामक जीव असंख्यातगणे हैं। ६५८०. क्योंकि इनका सञ्चय अन्तर्मुहूर्तमें होता है। * उनसे अल्पतर संक्रामक जीव असंख्यातगणे हैं।
६५८१. क्योंकि सम्यग्मिथ्वात्वको उद्वेलना करनेवाली राशिके साथ छयासठ सागर कालके भीतर सञ्चित हुई वेदकसम्यग्दृष्टि राशिको तथा सम्यक्त्वकी अपेक्षासे पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण कालके भीतर सञ्चित हुई राशिको यहाँ पर ग्रहण किया है।
* सोलह कषाय, भय और जुगप्साके अवक्तव्यसंक्रामक जीव सबसे स्तोक हैं।
६५८२. क्योंकि अनन्तानुबन्धियोंकी अपेक्षा विसंयोजनापूर्वक संयोगमें विद्यमान एक समयमें सञ्चित हुए पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण जीवोंको तथा शेष कर्मोंकी अपेक्षा सर्वोपशामनासे गिरनेके प्रथम समयमें विद्यमान संख्यात उपशामक जीवोंको यहाँ पर ग्रहण किया है।
* उनसे अवस्थित संक्रामक जीव अनन्तगुणे हैं।