Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा५८ उत्तरपयडिपदेससंकमे भुजगारो
३६७ ६५५१. कदो ? उव्वेल्लणाचरिमट्ठिदिखंडए भुजगारसंकम काणंतरिदाणमेय समयादो उवरि णाणाजीवावेक्खाए पुणो वि भुजगारपज्जायपरिणमणे विरोहाभावादो।
* उक्कस्सेण चउवीसमहोरत्ते सादिरेये। $ ५५२. कुदो ? उज्वेल्लणापवेसयाणमुक्कस्संतरस्स तप्पमाणत्तोवएसादो।
अप्पयरसंकामयाणं पत्थि अंतरं।। ६५५३. कुदो ? सम्मत्तप्पयरसंकामयाणमुवेल्लणापरिणदमिच्छाइट्ठीणमवोच्छिण्णकमेण सव्वद्धमवट्ठाणणियमादो ।
* अवत्तव्वसंकामयंतरं केवचिरं कालादो होदि। ६५५४. सुगमं।
ॐ जहएणेण एयसमओ।
६५५५. सम्मत्तादो मिच्छत्तं पडिबजमाणणाणाजीवाणमयसमयमेत जहण्णंतरसिद्धीए विसंवादाभावादो।
* उक्कस्सेण सत्त रादिदियाणि ।
5 ५५६. कुदो ? सम्मत्तप्पत्तिपडिभागेणेव तत्तो मिच्छेत्त गच्छमाण जीवाणमुक्कस्संतरसंभवं पडि विरोहाभावादो। जइ एदमणंतरसुत्तणिहिट्ठभुजगारसंकमुक्कस्संतरेण
६५५१. क्योंकि उद्वेलना संक्रमके अन्तिम स्थिति काण्डकके समय नाना जीवोंने भुजगार संक्रम करके अन्तर किया। पुनः एक समयके बाद नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्य जीवोंका भजगार पर्यायरूपसे परिणमन करनेमें कोई विरोध नहीं पाता।।
* उत्कृष्ट अन्तरकाल साधिक चौबीस दिन-रात्रि है।
६५५२. क्योंकि उद्वेलना संक्रममें प्रवेश करनेवाले जीवोंका उत्कृष्ट अन्तरकाल तत्प्रमाण है ऐसा उपदेश है।
* अल्पतर संकामक जीवोंका अन्तरकाल नहीं है ।
६५५३. क्योंकि सम्यक्त्वका अल्पतर संक्रम करनेवाले ऐसे उद्वेलना संक्रम रूपसे परिणत हुए मिथ्यादृष्टि जीवोंका अविच्छिन्नक्रमसे सर्वदा अवस्थान नियम देखा जाता है।
* अवक्तव्य संक्रामक जीवोंका अन्तरकाल कितना है ? ५५४. यह सूत्र * जघन्य अन्तरकाल एक समय है ।
६५५५. सम्यक्त्वसे मिथ्यात्वको प्राप्त होने वाले नाना जीवोंके एक समय प्रमाण जघन्य अन्तरकालके सिद्ध होने में कोई विसंवाद नहीं उपलब्ध होता।
* उत्कृष्ट अन्तरकाल सात रात्रि-दिन है।
६५५६. क्योंकि जितने जीव सम्यक्त्वको उत्पन्न करते हैं उसके अनुसार ही सम्यक्त्वसे मिथ्यात्वकोप्राप्त होने वाले जीवोंके उत्कृष्ट अन्तरकाल सम्भव होनेमें कोई विरोध नहीं आता।
शंका-यदि ऐसा है तो अनन्तर सूत्रमें निर्दिष्ट भुजगारसंक्रमका उत्कृष्ट अन्तर