Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ५८ ]
उत्तरपडिपदेस संकमे भजगारो
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* जहण्णेण एयसमभो ।
४०२. एदं पि सुगमं; इत्थिवेदप्पयरजहण्णकालैण समाणपरूवणत्तादो । *उकस्सेण बे छावद्विसागरोवमाणि तिरिण पलिदोवमाणि सादि
रेयाणि ।
९४०३. एदस्स वि कालस्स परूवणा इत्थिवेदप्पदरुकस्सकाले समाणा वरि पढमं तिपलिदोवमिसु पन्जिय णवुंसयवेदस्सप्पयर संक्रमं कुणमाणो तदवसाणे सम्मत्तलंभेण वेछावट्टिसागरोमाणि संखेज वस्सा हियाणि हिंडावेयन्त्रो ।
* सेसापि इत्थोवेदभंगो ।
९४०४. सेसाणि भुजगारावतव्त्रपदाणि णवुंसयवेदपडिबद्धाणि इत्थिवेदभंगेणाणुगंतन्त्राणि, भुजगारस्स जहण्ोण एयसमओ, उकस्सेण अंतोमुहुचं, अत्रत्तव्वस्स जहण्णुकस्से एयसमओ त्ति देण भेदाभावादो ।
* हस्स-रह-अरइसोगाणं भुजगार- अप्पयरसंकमो केवचिरं कालादो
होदि ?
४०५. सुगमं ।
* जहण्णेण एयसमत्र ।
* जघन्य काल एक समय है ।
६४०२. यह सूत्र भी सुगम है, क्योंकि स्त्रीवेदके अल्पतरसंक्रमके जघन्य कालके समान इसका कथन है ।
* उत्कृष्ट काल तीन पल्य अधिक दो छ्यासठ सागरप्रमाण है ।
९४०३. इस कालकी प्ररूपणा स्त्रीवेदके अल्पतरसंक्रमके उत्कृष्ट कालके समान है । इतनी विशेषता है कि सर्वप्रथम तीन पल्यकी आयुवालोंमें उत्पन्न होकर नपुंसकवेदके श्रल्पतरसंक्रमको करके उसके अन्तमें सम्यक्त्वकी प्राप्तिके साथ संख्यात वर्ष अधिक दो छयासठ सागर काल तक परिभ्रमण करावे |
* शेष पदों का भङ्ग स्त्रीवेदके समान है ।
§ ४०४. नपुंसकवेदसे सम्बन्ध रखनेवाले शेष भुजगार और अवक्तव्यपर स्त्रीवेद के भङ्गके समान जानने चाहिए, क्योंकि भुजगारसंक्रमका जघन्य काल एक समय है । और उत्कृष्ट काल मुहूर्त है तथा अवक्तव्यसंक्रमका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है इस प्रकार इस द्वारा दोनोंके कथन में कोई भेद नहीं है ।
* हास्य, रति, अरति और शोकके भुजगार और अन्पतर संक्रमका कितना
काल है ?
९४०५. यह सूत्र सुगम है । * जघन्य काल एक समय है ।
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