Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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૨૫૪ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
( बंधगो६ ६५१७. एत्थ सेसकम्मग्गहणेण सोलसकसाय-णवणोकसायाणं संगहो काययो । तेसिमवत्तव्यसंकामया असंकामया च भजियया । कुदो १ तेसि सव्वकालमत्थित्तणियमाणुवलंभादो।
8 सेसा णियमा।
६५१८. एत्थ सेसग्गहणेण भुजगारप्पयरावट्ठिदसंकामयाणं जहासंभवग्गहणं कायव्यं । ते णियमा अत्थि त्ति संबंधो कायव्यो । सेसं सुगमं । एदेण सामण्णणिद्देसेण पुरिसवेदाद्विदसंकामयाणं पि धुवभावाइप्पसंगे तण्णिवारणमुहेण तेसिम वत्तपरूवणदृमुत्तरसुत्तमोइण्णं ।
* पवरि पुरिसवेवस्सावहिवसंकामया भजियव्वा । __६५१६. कुदो ? तेसिमद्धवभा वित्तेण सम्माइट्ठीसु कत्थवि कदाइभाविभावदंसणादो । तदो भुजगारप्पयरसंकामयाणं धुवभावेणावहिदावत्तव्वा । संकामयाणं भयणावसेण पुरिसवेदस्स सत्तावीसभंगा समुप्पाएदव्या । एवमोघेण भंगविचयो सम्बकम्माणं परूविदो । संपहि आदेसपरूवणट्टमुच्चारणं वत्तइस्सामो । तं जहा
६५२०. आदेसेण णेरइय-मिच्छ०-सम्म०-सम्मामि० ओघं० । अणंताणु०४भुज. अप्प०संका० णिय० अस्थि । सेस पदाणि भयणिजाणि । बारसक०-पुरिसवे०
६५९७. यहाँपर शेष कर्मोंके ग्रहण करनेसे सोलह कषाय और नौ नोकषायोंका ग्रहण करना चाहिए क्योंकि उनके सर्वदा अस्तित्वका नियम नहीं उपलब्ध होता।
* शेष पदोंके संक्रामक जीव नियमसे हैं।
६५१८. यहाँ पर शेष पदका ग्रहण करनेसे भजगार, अल्पतर और अवस्थित संक्रामकोंका यथा सम्भव ग्रहण करना चाहिए । वे नियमसे हैं ऐसा सम्बन्ध करना चाहिए। शेष कथन सुगम है। इस सामान्य निर्देशसे पुरुषवेदके अवस्थित संक्रामकोंके भी ध्रुवपनेकी प्राप्तिका प्रसङ्गआया, इसलिए उसके निवारण करनेके अभिप्रायसे उनके अध्रवपनेका कथन करनेके लिए आगेका सूत्र आया है
* इतनी विशेषता है कि पुरुषवेदके अवस्थितसंक्रामक जीव भजनीय हैं।
६५१६. क्योंकि उनके अध्रुव होनेके कारण सम्यग्दृष्टियोंमें उनका कहीं पर कदाचित् सद्भाव देखा जाता है। इसलिए भुजगार और अल्पतर संक्रामकोंके ध्रुव होनेके कारण तथा अवक्तव्य संक्रामक तथा असंक्रामकोंके भजनीय होनेके कारण पुरुषवेदके सत्ताईस भङ्ग उत्पन्न करने चाहिए । इस प्रकार ओघसे सब कर्मोंका भङ्गविचय कहा । अब आदेशसे प्ररूपणा करनेके लिए उच्चारणाको बतलाते हैं । यथा
६५२०. आदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भङ्ग ओघके समान है। अनन्तानुबन्धीचतुष्कके भजगार और अल्पतर संक्रामक नाना जीव नियमसे हैं। शेष पद भजनीय हैं । बारह कषाय, पुरुषवेद, भय और जुगुप्साके भुजगार और अल्पतर संक्रामक
१ सेमाणि ता।