Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा०५८] उत्तरपयडिपदेससंकमे भुजगारो
રૂપણ भय-दुगुंछा० भुज०. अप्प०संका० णिय० अत्थि। सिया एदे च अवविदसंकामगो च, सिया एदे च अवट्ठिदसंकामया च ३। इत्थिवेद०-णवूस०-चदुणोक०-भुज०-अप्प०संका० णिय० अत्थि। एवं सव्वणेरइय० पंचि०तिरिक्खतिय देवा भवणादि जाव गवगेवजा ति।
६५२१. तिरिक्खेसु मिच्छ० सम्म०-सम्मामि०-अणंताणु०४ ओघं । बारसक०भय-दुगुछा० भुज० अप्प० अवढि० णिय० अस्थि । तिण्णिवेद-चदुणोक०-णारय. भंगो । पंचिंदियतिरिक्ख-अपज०-सम्म०-सम्मामि० अप्प० णिय० अस्थि सिया एदे च भुज० संकामगो च, सिया एदे च भुजगारसंकामगा च ३। सोलसक०-भय-दुगुंछा० भुज० अप्प०संका० णिय० अस्थि । अवढि०संका० भय-णिज्जा । तिण्णिवेद-चदुणोक० भुज० अप्पसंका० णियमा अस्थि ।
६५२२. मणुसतिए मिच्छ० सम्म०-सम्मामि०-इत्थि०-णवंस०-चदुणोक० ओघं । सोलसक०-पुरिसवे०-भय-दुगुंछा० भुज० अप्प०संका० णिय. अस्थि । सेसाणि भयणिजाणि पदाणि । मणुसअपज० सत्तावीस पयडीणं सधपदसंका० भय-णिज्जा । अणुद्दिसादि सबट्ठा ति मिच्छ०-सम्मामि०-इत्थिवेद०-णवूस० अप्प०संका० णिय०
नाना जीव नियमसे हैं। कदाचित् ये हैं और एक अवस्थित संक्रामक जीव है २। कदाचित् ये हैं और एक नाना अवस्थित संक्रामक जीव हैं ३। स्त्रीवेद, नपुंसकवेद और चार नोकषायके भुजगार और अल्पतर संक्रामक नाना जीव नियमसे हैं। इसी प्रकार सब नारकी, पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिक, देव और भवनवासियोंसे लेकर नौ ग्रेवेयक तकके देवोंमें जानना चाहिए।
६५२१. तिर्यञ्चोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कका भङ्ग ओघके समान है। बारह कषाय, भय और जुगुप्साके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित संक्रामक नाना जीव नियमसे हैं । तीन वेद और चार नोकषायोंका भङ्ग नारकियोंके समान है । पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकोंमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्वके अल्पतर संक्रामक नाना जीव नियमसे हैं। कदाचित् ये नाना जीव हैं और भजगार संक्रामक एक जीव है २ । कदाचित् ये नाना जीव हैं और भजगारसंक्रामक नाना जीव हैं ३ । सोलह कषाय, भय और जुगुप्साके भुजगार और अल्पतरसंक्रामक नाना जीव नियमसे हैं। अवस्थित संक्रामक जीव भजनीय हैं । तीन वेद और चार नोकषायोंके भुजगार और अल्पतरसंक्रामक नाना जीव नियमसे हैं।
६५२२. मनुष्यत्रिकमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिध्यात्व, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद और चार नोकषायोंका भङ्ग ओघके समान है। सोलह कषाय, पुरुषवेद, भय और जुगुप्साके भुजगार और अल्पतरसंक्रामक नाना जीव नियमसे हैं। शेष पद भजनीय हैं। मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सत्ताईस प्रकृतियोंके सब पदोंके संक्रामक जीव भजनीय हैं । अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, स्त्रीवेद और नपुंसकवेदके अल्पतर संक्रामक नाना जीव नियम
१. 'पदाणि' इति ता० प्रतौ नास्ति।