Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा०५८] उत्तरपडिपदेससंकमे भुजगारो
३५३ मेदेण सुत्तेण जाणाविदं । जइ एवं; एत्य सिया सद्दो ण पयोत्तयो ति णासंकणिजं, उवरिम-भयणिजभंगसंजोगासंजोगविवक्खाए धुवपदस्स वि कदाचिक्कभाव सिद्धीदो ।
सेससंकामया भजियव्वा । ६५१४. एत्थ सेससंकामया णाम भुजगारावत्तव्यसंकामया, ते च भयणिजा; सिया अत्थि, सिया णस्थि ति । कुदो ? तेसि कदाचिक्कभावदंसणादो। तदो एदेसिमेगबहुवयगविसेसिदाणमेग-दु-संजोगेणट्ठभंगसमुप्पत्ती वत्तया । धुवभंगेण सह सवेभंगा णव होति ।
ॐ सम्मामिच्छत्तस्स अप्पयरसंकामया णियमा।
६५१५. कुदो ? उव्वेल्लमाणमिच्छाइट्ठीणं वेदयसम्माइट्ठीणं च तदप्पयरसंकामयाणं सव्वकालमुवलंभादो। तदो एदेसिं 'ध्रुवभावेण सेससंकामयाणमेत्थ भयणी१ यत्तपदुप्पायणमुत्तरसुत्तमोइण्णं ।
8 सेससंकामया भजियव्वा ।
६५१६. एत्थ सेसग्गहणेण भुजगारावत्तव्यसंकामयाणमसंकामयसहिदाणं गहणं कायव्वं । ते भजिदया । कुदो ? तेसि धुवभाविताभावादो। तदो सत्तावीसभंगाणमेत्थुप्पत्ती वत्तव्या ।
सेसाणं कम्माणं अवत्तव्वसंकामगा च असंकामगाच मजिदव्वा । शब्दका प्रयोग नहीं करना चाहिए इस प्रकार यहाँ पर आशका नहीं करनी चाहिए क्योंकि आगेके भजनीय भङ्गोंके संयोग और असंयोगकी विवक्षा होने पर ध्रुवपदकी भी कादाचित्कभाव की सिद्धि होती है।
* शेष पदों के संक्रामक जीव भजनीय हैं ।
६५१४. यहाँ पर शेष पदोंके संक्रामकोंसे भजगार और अवक्तव्य संक्रामक जीव लिये गये हैं। वे भजनीय हैं अर्थात् कदाचित् होते हैं और कदाचित् नहीं होते, क्योंकि उनका कादाचित्कभाव देखा जाता है । इसलिए एकवचन और बहुवचनसे विशेषताको प्राप्त हुए इनके एक संयोगी और द्विसंयोगी आठ भङ्गोंकी उत्पत्ति करनी चाहिए। ध्रुवभङ्गके साथ सब भङ्ग नौ होते हैं।
* सम्यग्मिथ्यात्वके अल्पतरसंक्रामक जीव नियमसे हैं।
६५१५. क्योंकि उद्वेलना करनेवाले मिथ्यादृष्टि और वेदक सम्यग्दृष्टि जीव सम्मग्मिथ्यात्व की अल्पतर संक्रम करते और वे सर्वदा पाये जाते हैं इसके लिए इनके ध्रुवभावके साथ शेष पदोंके संक्रामकोंकी भजनीयताका यहाँपर कथन करनेके लिए आगेका सूत्र आया है।
* शेष पदोंके संक्रामक जीव भजनीय हैं।
६५१६. यहाँपर शेष पदके ग्रहण करनेसे असंक्रामकोंके साथ भुजगार और अवक्तव्य संक्रामकोंका ग्रहण करना चाहिए । वे भजनीय हैं, क्योंकि वे ध्रुव नहीं हैं। इसलिए सत्ताईस भङ्गोंकी उत्पत्तिका यहाँ पर कथन करना चाहिए ।
* शेष कर्मो के अवक्तव्यसक्रामक और असंक्रामक जीव भजनीय हैं। १'णि' ता०।