Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा०५८] उत्तरपयांडपदेससंकमे भुजगारो
३२७ ४१६. कुदो ? चरिमुवेलणखंडयदुचरिमफालीए सह तत्थुप्पण्णस्स विदियसमयम्मि तदुवलंभादो। दुचरिमुवेलणखंडयचरिमफालिसंकमादो चरिमुव्वेल्लणखंडय-. पढमफालि संकामिय तदर्णतरसमए ततो णिस्सारिदस्स वा तदुवलंभसंभवादो।
* उकस्सेण अंतोमुहुर्त ।। . ४२०. कुदो ? चरिमट्ठिदोखंडयउकीरणकालस्साणणाहियस्स भुजगारसंकम- . विसईकयस्स तत्थुवलंभादो।
* अप्पदरसंकामगो केवचिरं कालादो होदि ? ६४२१. सुगमं ।
ॐ जहएणेण एयसमझो। $ ४२२. कुदो? दुचरिमुबेल्लणखंडय दुचरिमफालीए सह तत्थुववण्णयम्मि तदुवलद्धीदो।
® उकस्सेण पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो। ६ ४२३. कुदो १ अप्पदरसंकमाविणाभाविदीहुव्वेलणकालावलंबणादो। ॐ सोलसंकसाय-भयदुगुंछाणमोघ अपच्चक्खाणावरणभंणो।
६४१६. क्योंकि चरम उद्वेलना काण्डककी द्विचरम फालिके साथ वहाँ उत्पन्न हुए जीवके दूसरे समयमें उक्त प्रकृतियोंके भुजगार संक्रमका जघन्य काल एक समय उपलब्ध होता है। अथवा द्विचरम उद्वेलना काण्डककी चरम फालिके संक्रमके बाद चरम उद्वेलना काण्डककी प्रथम फालिको संक्रमाकर उसके अनन्तर समयमें वहाँसे निकले हुए जीवके जघन्य काल एक समय उपलब्ध होता है।
* उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है।
६४२०. क्योंकि एकेन्द्रियोंमें भुजगार संक्रमका विषयभूत चरम स्थिति काण्डकका उत्कीरणकाल न्यूनाधिकतासे रहित अन्तर्मुहूर्त प्रमाण पाया जाता है। . * अल्पतर संक्रामकका कितना काल है ?
६४२१. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य काल एक समय है।
६४२२. क्योंकि द्विचरम उद्वलन काण्डककी द्विचरम फालिके साथ वहाँ पर उत्पन्न होने पर जघन्य काल एक समय उपलब्ध होता है।
* उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है।
६४२३. क्योंकि अल्पतर संक्रमके अविनाभावी दीर्घ उद्वेलन कालका अवलम्बन लिया गया है।
* सोलह कषाय, भय और जुगुप्साका मङ्ग ओघ अप्रत्याख्यानावरणके समान है ।