Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा०५८] उत्तरपयडिपदेससंकमे भुजगारो
३४१ ६४७२. सुगर्म ।
जहरणेण अंतोमुखतं । ६४७३. सुगम ।
उकस्सेण उघडपोग्गलपरियडें । ६४७४. एदपि सुगमं ।
ॐ णवुसयवेवभुजगारसंकामयंतर केवधिर कालादो होदि ? ६४७५. सुगमं । ॐ जहएणेण एयसमभो। ४७६. एदपि सुगमं ।
* उकस्सेण घेछावहिसागरोवमाणि तिपिण पलिदोवमाणि सादि. रेयाणि।
६४७७. कुदो ? तदप्पयरुक्कस्सकालस्स पयदंतरत्तेण विवक्खियत्तादो। * अप्पयरसंकायंतर केवचिरं कालादो होदि ? ॐ जहणणेण एयसममो। ॐ उकस्सेण अंतोमुहुतं । * प्रवत्तव्वसंकामयंतर केवचिर कालादो.होदि ?
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६४७२. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। ६४७३. यह सूत्र सुगम है। । * उत्कृष्ट अन्तरकाल उपापुद्गल परिवर्तन प्रमाण है। ६४७४. यह सूत्र भी सुगम है। • * नपुंसकवेदके भुजगार संक्रामकका अन्तरकाल कितना है ? ६४७५. यह सूत्र सुगम है।
* जघन्य अन्तरकाल एक समय है। ६४७६. यह सूत्र भी सुगम है।
* उत्कृष्ट अन्तरकाल तीन पन्य अधिक दो छयासठ सागर प्रमाण है । ६४७७. क्योंकि उसके अल्पतर संक्रमका उत्कृष्टकाल प्रकृत अन्तरकाल रूपसे विवक्षित है। * अल्पतर संक्रामकका अन्तरकाल कितना है ? . * जघन्य अन्तरकाल एक समय है। * उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। * अवक्तव्य संक्रामकका अन्तरकाल कितना है ?