Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
* जहण्णेण अंतोमुडुत्तं ।
९ ४८६. कुदो ? सव्वोवसामणापडिवाद जहणंतरस्स तप्यमाणोवलंभादो ।
* उक्कस्सेण उवडपोग्गलपरियहं ।
[ बंधगो ६
९ ४८७. कुदो १ तदुक्कस्सविरहकालस्स तप्यमाणत्तोवलंभादो । एवमोघेण सव्त्रपडीणं भुजगारादिपद संकामय जहण्णुकस्संतरपमाणविणिण्णयं काढूण संपहि तदादेस - परूवणाणिबंधणमुत्तरमुत्तपदमाह ।
* गदीसु च साहेयव्वं ।
४८८. एदीए दिसाए गदीसु च णिरयादिसु पयदंतरं विहाण मणुमा थिय दव्यमिदि वृत्तं होइ ।
४८६. संपहिएदेण बीजपदेण सूचिदत्थस्स उच्चारणाइरियपरूविद विवरणमणुवत्तसामो । त जहा -- आदेसेण णेरइयमिच्छत्तअनंताणु०४ भुज० अप्प० अवट्टि ० संका० जह० एयस० । अवत्त० जह० अंतोमु० । सम्म० भुज० जह० पलिदो ० असंखे ० भागो । अष्प ० अवत० संका० जह० अंतोमु० । सम्मामि० भुज० अप्प० संका ० जह० एयस० । अवत्त० जह० अंतोमु० । उक्क० सव्वेसिं तेत्तीसं सागरोवमाणि
* जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है ।
§ ४८६. क्योंकि सर्वोपशामना के प्रतिपातका जघन्य अन्तरकाल तत्प्रमाण उपलब्ध होता है । * उत्कृष्ट अन्तरकाल उपार्धपुद्गल परिवर्तन
प्रमाण 1
६ ४८७. क्योंकि सर्वोपशामनाके प्रतिपातका उत्कृष्ट विरहकाल तत्प्रमाण उपलब्ध होता है । इस प्रकार से सब प्रकृतियों के भुजगार आदि पदोंके संक्रामक जीवोंके जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल के प्रमाणका निर्णय करके अब उनकी आदेश प्ररूपणाको बतलाने वाले आगे सूत्रको कहते हैं
* इसी प्रकार चारों गतियोंमें अन्तरकाल साध लेना चाहिए ।
४८८. इसी दिशासे नारक आदि गतियोंमें प्रकृत अन्तरकालके विधानका अनुमान करके ले जाना चाहिए यह उक्त कथनका तात्पर्य है ।
६४८६. अब इस बीज पदसे सूचित होनेवाले अर्थका उच्चारणाचार्यके द्वारा कहे गये विवरणको बतलाते हैं । यथा - आदेश से नारकियोंमें मिध्यास्त्र और अनन्तानुबन्धीचतुष्कके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित संक्रामकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और अवक्तव्य संक्रामकका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है । सम्यक्त्वके भुजगार संक्रामकका जघन्य अन्तरकाल पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है तथा अल्पतर और अवक्तव्य संक्रामकका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है । सम्यग्मिथ्यात्वके भुजगार और अत्पतर संक्रामकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है तथा संक्रामकका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है । तथा उक्त सब प्रकृतियोंके अपने अपने सब पदोंके संक्रामक्कोंका उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम तेतीस सागर है। बारह कषाय, पुरुष