Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
जयधवलास हिदे कसायपाहुडे
[ दंधगो ६
५००. कुदो १ भुजगारप्पयरकालागमुक्कस्सेण पलिदोवमासंखेज्जभागपमाणाणं जोहेदरपक्खाणं व परियत्तमाणाणमण्णोपणेणंतरिदाणमेइ दिए संभवे विरोहाभावादो । * अवट्ठिदसंकामयंतरं केवचिरं कालादो होति ?
५०१. सुगमं ।
३५०
* जहण्णेण एयस॑मत्रो ।
§ ५०२. भुजगारेप्पदराणमण्णदरेणेयसमयमंतरिदस्स तदुवलंभादो ।
* उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । ६५०३. गयत्थमेदं सुत्तं; ओघेण समाणपरूवणत्तादो ।
* सेसाणं सत्तणोकसायाणं भुजगार- अप्पयर- संकामयंतरं केवचिरं लादो होदि ?
8
५०४. सुगमं ।
* जहणणेण एयसमत्रो ।
९५०५. पडिवक्खबंघेण सगबंघेण च एयसमयमंतरिदस्स तदुवलंभादो । * उकस्सेण अंतोमुहुत्तं ।
५००. क्योंकि : भुजगार और अल्पतर संक्रमका उत्कृष्ट काल पल्यके श्रसंख्यातवें भाग प्रमाण है। इसके बाद वे शुक्ल और कृष्णपक्ष के समान परस्पर नियमसे अन्तरको प्राप्त हो जाते हैं, इसलिए एकेन्द्रियोंमें इस अन्तरकालके प्राप्त होनेमें कोई विरोध नहीं आता ।
* अवस्थित संक्रामकका अन्तरकाल कितना है ? ६५०१. यह सूत्र सुगम है ।
* जघन्य अतरकाल एक समय है ।
६५०२. क्योंकि भुजगार और अल्पतरसंक्रमके द्वारा एक समयके लिए अन्तरको प्राप्त हुए इसका उक्त अन्तरकाल उपलब्ध होता है ।
* उत्कृष्ट अन्तर अनन्तकाल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तनके बराबर है । ६५०३. यह सूत्र गतार्थ है, क्योंकि इसकी प्ररूपणा ओघके समान है ।
* शेष सात नोकषायोंके भुजगार और अल्पतर संक्रामकका अन्तरकाल कितना है ? ५०४. यह सूत्र सुगम है ।
* जघन्य अन्तरकाल एक समय है ।
५०५. क्योंकि प्रतिपक्ष प्रकृतिके बन्ध से और अपने बन्धसे एक समयके लिए अन्तरको
प्राप्त हुए उक्त संक्रमोंका यह अन्तरकाल उपलब्ध होता है ।
* उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है ।