Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
निरंतरबंधेण विणा अवदिसंकमसामित्तविहाणसंभवो विरोहादो ।
* इत्थि एवं सयवेद-हस्स-रह- अरइ- सोगाणं भुजगार - अप्पदर अवत्तव्व संकमो कस्स ?
[ बंधगो ६
९३३८. सुगमं ।
* पणदरस्स ।
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९ ३३६. एत्थण्णदरणिद्द सेण मिच्छाइट्ठि-सम्माइट्ठीणं गहणं कायन्त्रं भुजगारप्पदरसामित्ताणमुहत्थ वि संभवे विरोहाभावादो । तं जहा - मिच्छाइट्ठिम्मि तात्र अप्यप्पणी बंधगद्धामेत्तकालं भुजगार संकमो होइ; तत्थागमादो णिज्जराए थोवभावोवलंभादो । तं कथं ? इत्थवेद-हस्सरीणं तक्कालबंधावलिया दिक्कतणवकबंधो संपुण्णसमयपत्रद्धमेत्तो णिञ्जरागोबुच्छा वुण समयपबद्धस्स संखेज्जभागमेत्ती चैव बंधगद्धानुसारेण सव्वत्थ संचयसिद्धीदो । णवुंसयवेदारइसोगाणं पि णत्रकबंधागमादो तक्कालभाविगोवु च्छणिज्जरा संखेजभागहीणा । एदस्स कारणं बंधगद्धाणुसरणेण वत्तन्वं । एवं च संते भुजगार संकमसा मित्तमेत्था - विरुद्धं सिद्धं । बंधविच्छेदकाले पुण अप्पयस्संकमो चैत्र दोह; तत्थागमामावेणेयं त
निरन्तर बन्धके बिना अवस्थित संक्रमके स्वामित्वका विधान करना सम्भव नहीं है, क्योंकि उसमें विरोध आता है ।
* स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, हास्य, रति, अरति और शोकका भुजगार, अल्पतर और अवक्तव्य संक्रम किसके होता है ?
९३३८. यह सूत्र सुगम है ।
* अन्यतर जीवके होता है ।
३३. यहाँ पर अन्यतर पदका निर्देश करनेसे मिथ्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टि जीवोंका ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि भुजगार और अल्पतर संक्रमका स्वामित्व उभयत्र ही सम्भव होने में कोई विरोध नहीं आता । यथा - मियादृष्टिके तो अपने - अपने बन्धककालप्रमाण काल तक भुजगार संक्रम होता है, क्योंकि वहाँ पर आयसे निर्जरा स्तोक उपलब्ध होती है ।
शंका- वह कैसे ?
समाधान — क्योंकि स्त्रीवेद, हास्य और रतिका बन्धावलिके बाद तात्कालिक जो नवकबन्ध है वह सम्पूर्ण समयबद्ध प्रमाण है । परन्तु निर्जरासम्बन्धीगोपुच्छा समय प्रबद्ध के श्रसंख्यातवें भागप्रमाण ही है, क्योंकि बन्धककाल के अनुसार सर्वत्र सञ्चयकी सिद्धि होती हैं । नपुंसक वेद, और शोकके नवकवन्धके आयसे तत्कालभावी गोपुच्छाकी निर्जरा संख्यातवें भागहीन है । इसका कारण बन्धककालके अनुसार कहना चाहिए और ऐसा होने पर भुजगार संक्रमका स्वामित्व यहाँ पर अविरोध रूपसे सिद्ध होता है । बन्धविच्छेदके कालमें तो अल्पतरसंक्रम ही होता है, क्योंकि