Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे फसायपाहुडे
[बंधगो ६ ६३६०. सुगमं ।
जहणणेण अंतोमुहुत्तं । ६ ३६१. सम्मत्तादो मिच्छत्तं गंतूण सबलहणतोमुहुत्तमेत्तकालमप्पयरसंकमण परिणमिय पुणो सम्मत्तमुवगंतूणासंकामयभावेण परिणदम्मि तदुवलंभादो ।
उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेनदिभागो। ४३६२. कुदो ? सम्मत्तादो मिच्छत्तं गंतूण सव्वुक्कस्सेणुव्वेल्लणकालेणुव्बेल्लमाणयस्स तदुवलंभादो।
® अवत्तव्वसंकमो केवचिरं कालादो होदि ? ६३६३. सुगमं । * जहएणुकस्सेण एयसमो।
३६४. सम्मत्तादो मिच्छत्तमुवगयस्स पढमसमयादो अण्णत्थ तदभावविणिण्णयादो। * सम्मामिच्छत्तस्स भुजगारसंकमो केवचिरं कालादो होदि ? ६३६५. सुगमं ।
8 एको वा दो वा समया एवं समयुत्तरो उफस्सेण जाव चरिमुव्वे. ल्लणकंडयुकारणात्ति।
६ ३६०. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है ।।
६ ३६१. क्योंकि सम्यक्त्वसे मिथ्यात्वमें जाकर सबसे जघन्य अन्तर्मुहूर्त काल तक अल्पतर संक्रमरूपसे परिणमन करके पुनः सम्यक्त्वको उत्पन्न करके असंक्रामकभावसे परिणत होने पर उक्त काल उपलब्ध होता है।
* उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है।
६३६२. क्योंकि सम्यक्त्वसे मिथ्यात्वमें जाकर सबसे उत्कृष्ट उद्वेलना कालके द्वारा उद्वेलन। करनेवाले जीवके उक्त कालकी उपलब्धि होती है।
* अवक्तव्यसंक्रमका कितना काल है ? ६३६३. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है।
६३६४. क्योंकि सम्यक्त्वसे मिथ्यात्वको प्राप्त हुए जीवके प्रथम समयको छोड़कर अन्यत्र उसके अभावका निर्णय है।
* सम्यग्मिथ्यात्वके भुजगार संक्रमका कितना काल है ? ६३६५. यह सूत्र सुगम है।
* एक समय और दो समय भी है। इस प्रकार एक समय बढ़ाते हुए उत्कृष्ट काल अन्तिम उद्वलना काण्डकके उत्कीरण करनेमें जितना समय लगे उतना है ।