Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो६ करणपढमसमए गुणसंकमपारंभेणाप्पयरसंकमस्स पज्जवसाणं होइ । तदो संपुण्णाछावट्ठिसागरोवममेत्तवेदगसम्मत्तकस्सकालम्मि अपुवाणियढिकरणद्धामेत्तमप्पयरसंकमस्स ण लभइ त्ति । तम्मि पुघिल्लोरसमसम्मत्तकालन्भंतरअप्पयरकालादो सोहिदे सुद्धसेसमेत्तेयसादिरेयछावद्विसागरोवमपमाणो पयदुक्कस्सकालवियप्पो समुबलद्धो होइ ।
* अवहिदसंकमो केवचिरं कालादो होदि ? ६३५२. सुगममेदं। * जहएणेण एयसमप्रो।
६ ३५३. पुव्वुप्पण्णेण सम्मत्तेण मिच्छत्तादो पडिणियत्तिय वेदयंसम्मत्तमुवगयस्स पढमावलियाए विदियादिसमएसु जत्थ वा तत्थ वा एयसमयभागगणिज्जराणसरिसत्तर सेणावट्ठिदसंकमं कादूण तदणंतरसमए भुजगारमप्पयरभावं वा गयस्स एयसमयमेत्तावहिदसंकमजहण्णकालोवलंभादो।
* उक्कस्सेण संखेजा समया।
8 ३५४. तत्व सत्तट्ठसमएसु आगमणिजराणं सरिसत्तसंभवेण तेत्तियमेत्तावहिदसंकममुकस्सकालसिद्धीए विरोहाभावादो।
सम्यक्त्वका काल शेष रहने तक तथा कुछ कम छयासठ सागरप्रमाण वेदक सम्यक्त्वके कालके पूर्ण होने तक होता रहता है। उसमें वेदकसम्यक्त्वके अन्तर्मुहूर्त कालके शेष रहने पर क्षपणाके लिए उद्यत हुए उसके अपूर्वकरणके प्रथम समयमें गुणसंक्रमका प्रारम्भ होनेसे अल्पतरसंक्रमका अन्त होता है । इसलिए वेदकसम्यक्त्वके सम्पूर्ण छयासठ सागरप्रमाणकालमें जो अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरणका काल है उतना अल्पतरसंक्रमका काल नहीं प्राप्त होता, इसलिए इस अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरणके कालको पूर्वोक्त उपशमसम्यक्त्वके भीतर प्राप्त हुए अल्पतरसंक्रमके कालमेंसे घटा देने पर जो काल शेष बचे उसे कुछ न्यून वेदकसम्यक्त्वके उत्कृष्टकालमें जोड़ देने पर साधिक छयासठ सागरप्रमाण प्रकृत उत्कृष्ट कालका विकल्प प्राप्त होता है।
* अवस्थितसंक्रमका कितना काल है ? ६ ३५२. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य काल एक समय है।
६३५३. पूर्वोत्पन्न सम्यक्त्वसे मिथ्यात्वमें जाकर और वहाँसे निवृत्त होकर वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त हुए जीवके प्रथम आवलिके द्वितीयादि समयोंमें जहाँ-कहीं एक समयके लिए आय और निर्जराके समान होनेके कारण अवस्थित संक्रमको करके उसके अनन्तर समयमें भुजगारसंक्रम या अल्पतरसंक्रमको प्राप्त होने पर अवस्थित संक्रमका जघन्य काल एक समय मात्र उपलब्ध होता है।
* उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। ६३५४. वहीं पर आय और निर्जराके सात-आठ समय तक समान रूपसे सम्भव होनेके