Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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उत्तरपयांडपदैससंकमे भुजगारो
* अवत्तव्वसंकमो केवचिरं कालादो होदि ?
६३५५. सुगमं ।
* जहण्णुक्कस्सेण एयसमत्रो ।
३५६. सम्माइट्ठिपढमसमयं मोतूणण्णत्थ तदभावविणिण्णयादो । * सम्मत्तस्स भुजगारसंकमो केवचिरं कालादो होदि ? ९३५७. सुगमं ।
गा० ५८ ]
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* जहणणेण एयसमत्रो ।
९ ३५८. तं जहा – उल्लेमाणमिच्छाइट्टिणा सम्मत्ता हिमुहेण मिच्छत्तपढमट्ठिदिचरिमसमए चरिमुवेल्लणखंड यपढमफालिगुणसंकमेण संकामिदा । तदो अन्तरसमए सम्मत्तमुपाइय असंकामगो जादो लद्धो जहण्णेणेयसयमेत्तो सम्मत्त भुजगार संकामयकालो ।
* उकस्सेण अंतोमुहुत्तं ।
९ ३५६. कुदो ? चरिमुव्वेल्ल कंडए सन्नत्थेव गुणसंक्रमेण परिणदम्मि पयदभुजगारमुकस्सकालरस तप्यमाणत्तोवलंभादो |
* अप्पयरसंकमो केवचिरं कालादो होदि ?
कारण अवस्थित संक्रमके उतने मात्र उत्कृष्ट कालकी सिद्धिमें कोई विरोध नहीं आता ।
* अवक्तव्य संक्रमका कितना काल है ।
६ ३५५. यह सूत्र सुगम है ।
* जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है ।
९ ३५६. क्योंकि सम्यग्दृष्टिके प्रथम समयको छोड़कर अन्यत्र मिध्यात्वका अवक्तव्य संक्रम नहीं होता ऐसा निर्णय है ।
* सम्यक्त्वके भुजगारसंक्रमका कितना काल है ?
६ ३५७. यह सूत्र सुगम है ।
* जघन्य काल एक समय है ।
६३५८८. यथा - उद्वेलना करनेवाले और सम्यक्त्व के अभिमुख हुए मिध्यादृष्टि जीवने मिथ्याant प्रथम स्थिति अन्तिम समय अन्तिम स्थिति काण्डककी प्रथम फालिको गुणसंक्रमके द्वारा संक्रमित किया । उसके बाद अनन्तर समय में सम्यक्त्वको उत्पन्न करके वह असंक्रामक हो गया । इस प्रकार सम्यक्त्वके भुजगार संक्रामकका जघन्य काल एक समय प्राप्त हो गया ।
* उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ।
६ ३५६. क्योंकि अन्तिम उद्वेलना काण्डकके सर्वत्र ही गुणसंक्रमरूपसे परिणत होने पर प्रकृत भुजगार संक्रमका उत्कृष्ट काल तत्प्रमाण उपलब्ध होता है ।
* अल्पतरसंक्रमका कितना काल है ?