Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
३१७
गा०५८]
उत्तरपयडिपदेससंकमे भुजगारो * उकस्सेण संखेज्जा समया।
६ ३८२. आगमणिज्जराणं सरिसत्तवसेण सत्तट्ठसमएसु अवडिदसंक्रमसंभवे विरोहाभावादो।
अवत्तव्वसंकामगो केवचिरं कालादो होदि ? ६३८३. सुगमं । * जहएणुक्कस्सेण एयसमओ। ६ ३८४. विसंजोयणापुधसंजोगणबबंधावलियवदिक्कंतपढमसमए तदुवलंभादो।
ॐ बारसकसाय-पुरिसवेद-मय-दुगुंछाणं भुजगार-अप्पदरसंकमो केवचिरं कालादो होदि?
६३८५. सुगमं । * जहएणणेयसमभो।
६३८६. भुजगारादो अप्पयरमप्पयरादो वा भुजगारं गयस्स तदणंतरसमए पदंतरगमणेण तदुवलंभादो।
ॐ उकस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो। ३८७. एइ दिएहितो पंचिदिएसु पंचिदिएहिंतो वा एइंदिएसुप्पण्णस्स जहाकम
* उत्कृष्ट काल संख्यात समय है।
६३८२. क्योंकि आय और निर्जराके समान होनेके कारण सात-आठ समय तक अवस्थितसंक्रम सम्भव है इसमें कोई विरोध नहीं आता।
अवक्तव्यसंक्रामकका कितना काल है ? ६३८३. यह सूत्र सुगम है। . * जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है ।
६३८४. क्योंकि विसंयोजनापूर्वक संयोग होने पर जो नवकबन्ध होता है उसकी बन्धावलिके व्यतीत होने के प्रथम समयमें उस कालकी उपलब्धि होती है ।
* बारह कषाय, पुरुषवेद, भय और जुगुप्साके भुजगार और अल्पतरसंक्रमका कितना काल है ?
६३८५. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य काल एक समय है।
६३८६. क्योंकि भुजगारसे अल्पतरको या अल्पतरसे भुजगारको प्राप्त हुए जीवके तदनन्तर समयमें दूसरे पदको प्राप्त करनेसे उक्त काल उपलब्ध होता है।
* उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। ६३८७. क्योंकि एकेन्द्रियोंसे पन्चेन्द्रियोंमें अथवा पन्चेन्द्रियोंसे एकेन्द्रियों में उत्पन्न हुए