Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा०५८] उत्तरपयडिपदेससंकमे भुजगारो
३०५ णिजरा-परिणदाणमेदेसि तदविरोहादो। एवं चेव सम्माइविम्हि वि तदुभयसामित्ताविरोहो दहव्यो । णवरि इत्थि-णवंसयवेदाणं सम्माइट्ठिम्मि बंधविरहियाणमप्पयरसंकमो चेवेत्ति गुणसंकमसिए तेसिं भुजगारसामित्तमवहारेयव्यं । सव्वेसिमबत्तव्यसंकमो सयोवसामणापडिवादपढमसमए दट्ठव्यो ।
एवमोघेण सामित्ताणुगमो समत्तो।। ६३४०. आदेसेण णेरइय० मिच्छ० भुज० अप्प० अवढि० संक० कस्स ? अण्णद० सम्माइट्ठि० । अवत्त० संक० कस्स ? अण्णद० सम्माइहिस्स पढमसमयसंकामयस्स सम्म० भुज० अप्प० संक० कस्स ? अण्णद० मिच्छाइट्टि० अवत्त० संक० कस्स ? अण्णद० पढमसमयसंका० मिच्छाइट्ठि० सम्मामि० भुज० अप्प० संक० कस्स ? अण्णद० सम्माइट्टि० मिच्छाइट्टि वा । एवमवत्त० अणंताणु०चउक्क० भुज० अप्प० संक० कस्स ? अण्णद० सम्माइट्ठि० मिच्छाइद्विस्स वा । अबढि० संक० कस्स ? अण्णद० मिच्छाइढि० । अवत्त० संक० कस्स ? अण्णद० मिच्छादिढि० पढमसमयसंका० बारसक०-भय-दुगुछा० ओघ । णवरि अवत्त० णस्थि । पुरिसवे० भुज० अप्प० संक० कस्स ? अण्णद० सम्माइडि. मिच्छाइट्ठिस्स वा । अबढि० संक० कस्स ? अण्णद० सम्माइट्ठो। इत्थीवे. गस० भुज०
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वहाँ पर आयका अभाव हो जानेसे एकान्तसे निर्जरारूपसे परिणत हुए इन कर्मों के अल्पतरसंक्रमके होने में कोई विरोध नहीं आता। इसी प्रकार सम्यग्दृष्टि जीवके भी इन दोनोंके स्वामित्वका अविरो जान लेना चाहिए । इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद और नपुंसकवेदका सम्यग्दृष्टिके बन्ध नहीं होता इसलिए वहाँ इनका अल्पतरसंक्रम ही है। तथा गुणसंक्रमके समय उनके भुजगारसंक्रमका स्वामित्व जानना चाहिए। सबका अवक्तव्यसंक्रम सर्योपशामनासे गिरनेके प्रथम समयमें जानना चाहिए।
__ इस प्रकार ओघसे स्वामित्वानुगम समाप्त हुआ ६३४०. श्रादेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्वका भुजगार, अल्पतर और अवस्थितसंक्रम किसके होता है ? अन्यतर सम्यग्दृष्टिके होता है। प्रवक्तव्यसंक्रम होता है ? प्रथम समयमें संक्रमण करनेवाले अन्यतर सम्यग्दृष्टिके होता है। सम्यक्त्वका भजगार और अल्पतर संक्रम किसके होता है. ? अन्यतर मिथ्यादृष्टिके होता है। अवक्तव्यसंक्रम किसके होता है ? प्रथम समयमें संक्रमण करनेवाले अन्यतर मिथ्यादृष्टिके होता है। सम्यग्मिथ्यात्वका भुजगार और अल्पतरसंक्रम किसके होता है ? अन्यतर सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टिके होता है । इसी प्रकार अवक्तव्यसंक्रमका स्वामित्व जानना चाहिए। अनन्तानुवन्धीच तुकका भजगार और अल्पतरसंक्रम किसके होता है ? अन्यतर सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टिके होता है। अवस्थितसंक्रम किसके होता है ? अन्यतर मिथयादृष्टिके होता है । अवक्तव्यसंक्रम किसके होता है ? प्रथम समयमै संक्रमण करनेवाले अन्यतर मिथ्यादृष्टिके होता है । बारह कषाय भय और जुगुप्साका भङ्ग ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि यहाँ.पर इनका प्रवक्तव्यसंक्रम नहीं है। पुरुषवेदका भजगार और अल्पतरसंक्रम किसके होता है ? अन्यतर सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टिके होता है। अवस्थितसंक्रम किसके होता है ? अन्यतर सम्यग्दृष्टिके होता है। स्त्रीवेद और नपुंसकवेदका भजगारसंक्रम
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