Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा०५८]
उत्तरपयडिपदेससंकमे अप्पाबहुअं * णवंसयवेदे जहएणपदेससंकमो संखेजगुणो। ६ २७४. कुदो ? बंधगद्धावसेणेदस्स तत्तो संखे०गुणत्तं पडि विरोहाभावादो। * पुरिसवेदे जहएणपदेससंकमो असंखेज्जगुणो।
६ २७५. कुदो ? खरिदकम्मंसियलक्खणेणागंतूण णेरइएसुप्पण्णस्स पडिवक्खबंधगद्धामेत्तगलणेण पुरिसवेदस्स अधापवत्तसंकमणिबंधणजहण्यसामित्तावलंभादो ।
ॐ हस्से जहएणपदेससंकमो संखेज्जगुणो।
६ २७६. कुदो ? पुरिसवेदबंधगद्धादो हस्सरइबंधगद्धाए संखेज्जगुणकमेणावट्ठाणदसणादो।
रदीए जहपणपदेससंकमो विसेसाहिओ। २७७. पयडि विसेसमेत्तेण। ॐ सोगे जहण्णपदेससंकमो संखेजगु०। ६ २७८. कुदो ? बंधगद्धापडिवद्धगुणगारस्स तहाभावोवलंभादो ।
अरदोए जहण्णपदेससंकमो विसेसाहिओ। ६ २७६. केत्तियमेत्तेण ? पयडि विसेसमेण ।
ॐ दुगुंछाए जहएणपदेससंकमो विसेसाहिओ। ६२८०. केतियमेत्तेण हस्सरदिवंधगद्धा पडिबद्धसंखेज्जदिभागमेत्तेण ।
* उससे नपुंसकवेदका जघन्य प्रदेशसंक्रम संख्यातगुणा है । ६२७४. क्योंकि बन्धककालके वशसे इसके उससे संख्यातगुणे होनेमें विरोध नहीं आता। * उससे पुरुषवेदका जघन्य प्रदेशसंक्रम असंख्यातगुणा है ।
२५. क्योंकि क्षपितकमांशिक लक्षणसे आकर नारकियों में उत्पन्न हए जीवके प्रतिपक्ष बन्धककालके गलनेसे पुरुषवेदके अधःप्रवृत्तसंक्रम निमित्तक जघन्य स्वामित्व उपलब्ध होता है।
* उससे हास्यका जघन्य प्रदेशसंक्रम संख्यातगुणा है।
६२७६. क्योंकि पुरुषवेदके बन्धक कालसे हास्य-रतिके बन्धककालका संख्यात गुणित रूपसे अवस्थान देखा जाता है।
* उससे रतिका जघन्य प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। ६ २७७. क्योंकि इसका कारण प्रकृति विशेषमात्र है। * उससे शोकका जघन्य प्रदेशसंक्रम संख्यातगुणा है । ६२७८. बन्धक कालसे सम्बन्ध रखनेवाले गुणकारकी इस प्रकारसे उपलब्धि होती है। * उससे अरतिका जघन्य प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। ६ २७६. कितना अधिक है ? प्रकृति विशेषमात्र अधिक है।
* उससे जुगुप्साका जघन्य प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। ६२८०. कितना अधिक है ? हास्य-रतिके बन्धककालके संख्यातवें ग अक्कि है।