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________________ २८३ गा०५८] उत्तरपयडिपदेससंकमे अप्पाबहुअं * णवंसयवेदे जहएणपदेससंकमो संखेजगुणो। ६ २७४. कुदो ? बंधगद्धावसेणेदस्स तत्तो संखे०गुणत्तं पडि विरोहाभावादो। * पुरिसवेदे जहएणपदेससंकमो असंखेज्जगुणो। ६ २७५. कुदो ? खरिदकम्मंसियलक्खणेणागंतूण णेरइएसुप्पण्णस्स पडिवक्खबंधगद्धामेत्तगलणेण पुरिसवेदस्स अधापवत्तसंकमणिबंधणजहण्यसामित्तावलंभादो । ॐ हस्से जहएणपदेससंकमो संखेज्जगुणो। ६ २७६. कुदो ? पुरिसवेदबंधगद्धादो हस्सरइबंधगद्धाए संखेज्जगुणकमेणावट्ठाणदसणादो। रदीए जहपणपदेससंकमो विसेसाहिओ। २७७. पयडि विसेसमेत्तेण। ॐ सोगे जहण्णपदेससंकमो संखेजगु०। ६ २७८. कुदो ? बंधगद्धापडिवद्धगुणगारस्स तहाभावोवलंभादो । अरदोए जहण्णपदेससंकमो विसेसाहिओ। ६ २७६. केत्तियमेत्तेण ? पयडि विसेसमेण । ॐ दुगुंछाए जहएणपदेससंकमो विसेसाहिओ। ६२८०. केतियमेत्तेण हस्सरदिवंधगद्धा पडिबद्धसंखेज्जदिभागमेत्तेण । * उससे नपुंसकवेदका जघन्य प्रदेशसंक्रम संख्यातगुणा है । ६२७४. क्योंकि बन्धककालके वशसे इसके उससे संख्यातगुणे होनेमें विरोध नहीं आता। * उससे पुरुषवेदका जघन्य प्रदेशसंक्रम असंख्यातगुणा है । २५. क्योंकि क्षपितकमांशिक लक्षणसे आकर नारकियों में उत्पन्न हए जीवके प्रतिपक्ष बन्धककालके गलनेसे पुरुषवेदके अधःप्रवृत्तसंक्रम निमित्तक जघन्य स्वामित्व उपलब्ध होता है। * उससे हास्यका जघन्य प्रदेशसंक्रम संख्यातगुणा है। ६२७६. क्योंकि पुरुषवेदके बन्धक कालसे हास्य-रतिके बन्धककालका संख्यात गुणित रूपसे अवस्थान देखा जाता है। * उससे रतिका जघन्य प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। ६ २७७. क्योंकि इसका कारण प्रकृति विशेषमात्र है। * उससे शोकका जघन्य प्रदेशसंक्रम संख्यातगुणा है । ६२७८. बन्धक कालसे सम्बन्ध रखनेवाले गुणकारकी इस प्रकारसे उपलब्धि होती है। * उससे अरतिका जघन्य प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। ६ २७६. कितना अधिक है ? प्रकृति विशेषमात्र अधिक है। * उससे जुगुप्साका जघन्य प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। ६२८०. कितना अधिक है ? हास्य-रतिके बन्धककालके संख्यातवें ग अक्कि है।
SR No.090221
Book TitleKasaypahudam Part 09
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size19 MB
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