Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा०५८]
. उत्तरपयडिपदेससंकमे अप्पाबहुअं कोहे जहएणपदेससंकमो विसेसाहिओ। * मायाए जहएणपदेससंकमो विसेसाहित्रो। * लोभे जहएणपदेससंकमो विसेसाहित्रो। ॐ पच्चक्खाणमाणे जहएणपदेशसंकमो विसेसाहिओ। * कोहे जहएणपदेससंकमो विसेसाहिओ। * मायाए जहएणपदेससंकमो विसेसाहिओ। * लोभे जहएणपदेससंकमो विसेसाहिो । ६ २६२. एदाणि सुत्ताणि पयडिविसेसमेत्तकारणगब्भाणि सुगमाणि । * पुरिसवेदे जहण्णपदेससंकमो अणंतगुणो। 9 २६३. कुदो ? देसघादिकारणावेक्खित्तादो।
* इत्थिवेदे जहएणपदेससंकमो संखेजगुणो । ६२६४. कुदो ? बंधगद्धावसेण तावदिगुणत्तोवलंभादो। * हस्से जहएणपदेससंकमो संखेज्जगुणो। ६ २६५. एत्थ वि बंधगद्धावसेण संखेजगुणत्तसिद्धी दट्ठव्या । * रदोए जहणणपदेससंकमो विसेसाहित्रो।
* उससे अप्रत्याख्यान क्रोधका जघन्य प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। * उससे अप्रत्याख्यान मायाका जघन्य प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। * उससे अप्रत्याख्यान लोभका जघन्य प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। * उससे प्रत्याख्यान मानका जघन्य प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। * उससे प्रत्याख्यान क्रोधका जघन्य प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। * उससे प्रत्याख्यान मायाका जघन्य प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। * उससे प्रत्याख्यान लोभका जघन्य प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। ६ २६२. इन सूत्रोंमें प्रकृति विशेषमात्र कारण गर्भित है, इसलिए ये सुगम हैं। * उससे पुरुषवेदका जघन्य प्रदेशसंक्रम अनन्तगुणा है। ६२६३. क्योंकि इसका कारण देशघातिपना है। * उससे स्त्रीवेदका जघन्य प्रदेशसंक्रम संख्यातगुणा है। ६२६४. क्योंकि बन्धककालवश उतने गुणेकी उपलब्धि होती है। * उससे हास्यका जघन्य प्रदेशसंक्रम संख्यातगुणा है । ६२६५. यहाँ पर भी बन्धक कालवश संख्यातगुणे की सिद्धि जान लेनी चाहिए। * उससे रतिका जघन्य प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है।