Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो ६ * सम्मामिच्छत्ते जहणणपदेससंकमो असंखेजगुणो। ६२८८. सुगममेदमोघादो अविसिट्ठकारणपरूवणतादो।
ॐ अणंताणुबंधिमाणे जहएणपदेससंकमो असंखेजगुणो ।
६ २८६. कुदो ? अधापयत्तभागहारवग्गेण खंडिददिवड्डगुणहाणिमेत्तजहण्णसमयपबद्धपमाणत्तादो । तं पि कुदो ? विसंजोयणापुव्यसंजोगेण सेसकसाएहितो अधापातसंकमेग पडिपिछदःवविदकम्मंसियदव्येण सह समयाविरोहेण सयलहुमेइदिएसुप्पण्णस्स पढमसमए अधापवत्तसंकमेण पयदजहण्गसामित्तावलंबणादो।
* कोहे जहएणपदेससंकमो विसेसाहिो । * मायाए जहएणपदेससंकमो विसेसाहिो । * लोहे जहण्णपदेससंकमो विसेसाहिो। ६२६०. एदाणि सुताणि सुगमाणि ।
ॐ अपचक्खाणमाणे जहएणपदेससंकमो असंखेजगुणो ।
६ २६१. कुदो? खविदकम्मंसियलक्खणेणागंतूण दिवड्डगुणहाणिमेत्तजहण्णसमयबद्धेहिं सह एइंदिएसुप्पण्णपढमसमए अधापवत्तसंकमेण पडिलद्ध जहण्णभावत्तादो। एत्थ गुणगारो अधापवत्तभागहारमेत्तो ।
* सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य प्रदेशसंक्रम असंख्यातगुणा है। ६२८८. यह सूत्र सुगम हैं, क्योंकि इसके कारणका कथन ओघके समान ही है । * उससे अनन्तानुबन्धी मानका जघन्य प्रदेशसंक्रम असंख्यातगुणा है।
६२८६. क्योंकि वह अधःप्रवृत्तभागहारके वर्गसे भाजित डेढ़ गुणहानिमात्र जघन्य समयप्रबद्धप्रमाण है।
शंका-वह भी कैसे ? .
समाधान-क्योंकि विसंयोजनापूर्वक संयोगके कारण शेष कषायोंमें से अघःप्रवृत्त संक्रम प्राप्त हुए क्षपित कर्मा शिक द्रव्यके साथ यथाविधि अति शीघ्र एकेन्द्रियोंमें उत्पन्न हुए जीवके प्रथम समयमें अधःप्रवृत्त संक्रमके द्वारा प्रकृत जघन्य स्वामित्वका अवलम्बन किया गया है।
* उससे अनन्तानुबन्धी क्रोधका जघन्य प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। * उससे अनन्तानुबन्धी मायाका जघन्य प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है । * उससे अनन्तानुबन्धी लोभका जघन्य प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है । ६२६०. ये सूत्र सुगम हैं। * उससे अप्रत्याख्यान मानका जघन्य प्रदेशसंक्रम असंख्यातगुणा है ।
६२६१. क्योंकि क्षपितकर्मा शिक लक्षणसे आकर डेढ़ गुणहानिमात्र जघन्य समयप्रबद्धों के साथ एकन्द्रियों में उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें अधःप्रवृत्तसंक्रमके द्वारा जघन्यपनेकी प्राप्ति होती है । यहाँ पर गणकार अधःप्रवृत्त भागहार प्रमाण है।