Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ८ ]
उत्तरपर्याढपदेससंकमे भुजगारो
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कादूणे ति णेदं वयणं घडदे समयूणावलियचरिमसमयमिच्छाइट्ठिमादि कादूणे त्ति वत्तव्यं १ सच्चमेदं; आवलियचरिमसमय मिच्छाइट्ठिमुबलक्खणं कादृण सेससमयमिच्छाइट्ठीणं गहणणिमित्त ं सुत्ते तस्स णिद्देसो कदो । पर्वतादीनि क्षेत्राणीत्यादिवत् । तदो सम्मा इट्ठिपढमसमए असंकमपाओग्गाणं समयूणावलियमेत्त समयपबद्धाणं मज्झे सम्माss विदियसमय पहुडि जहाकमं बंधावलियवदिक्कतव सेण जस्स जस्स संक्रमपाओग्गभावो होइ सो सो समयपत्रद्धो संकामिज्जदि । एवं संकामिज्जमासु तेसु तं विदियसमयसम्मा
मादि का जाव आवलिय सम्माइट्ठि त्ति ताव एत्थं भुजगार संकमसंभवो होज । किं कारणं १ एत्थतणणिज्जरादो संकमपाओग्गभावेण दुकमाणसमयपबद्धस्स बहुत्ते संते भुजगार संक्रमसंभवस तत्थ परिष्कुडमुलंभादो । तदो एदम्मि विसए मिच्छत्तस्स भुजगारसंक्रमसामित्तं होइ ति सिद्धं । संपहि एत्थ भुजगार संकमो चेवेत्ति अवहारणपडिसेहमिदमाह -
* एहु सव्वत्थ आवलियाए भुजगार संकमो जहणणेण एयसमओ । उकस्सेणावलिया समयूषा ।
वहाँ पर संक्रमके योग्य होता है, क्योंकि उसकी मिथ्यादृष्टिके अन्तिम समय में बन्धावलि पूर्ण गई है।
शंका – यदि ऐसा है तो उससे 'लेकर' यह वचन नहीं बनता । किन्तु इसके स्थान में 'एक समय कम आवलिके अन्तिम समयवर्ती मिथ्यादृष्टिसे लेकर' ऐसा कहना चाहिए ?
समाधान - यह सत्य है । किन्तु श्रावलिके अन्तिम समयवती मिध्यादृष्टिको उपलक्षण करके शेष समयवर्ती मिथ्यादृष्टियोंका ग्रहण करनेके लिए सूत्रमें उक्त वचनका निर्देश किया है । जिस प्रकार लोक में पर्वतसे लगे हुए क्षेत्रका ज्ञान कराने के लिए 'पर्वतादि क्षेत्र' वचनका व्यवहार होता है उसी प्रकार प्रकृतमें जान लेना चाहिए ।
इसलिए सम्यग्दृष्टि के प्रथम समय में संक्रमके योग्य एक समय कम आवलिमात्र समयप्रबद्धोंमेंसे सम्यग्दृष्टिके दुसरे समयसे लेकर क्रमसे बन्धावलिके व्यतीत होनेके कारण जो जो समयप्रबद्ध संक्रमणके योग्य होता है वह वह समयप्रबद्ध संक्रमाया जाता है । इस प्रकार उन समयप्रबद्धों को संक्रामित करते हुए द्वितीय समयवर्ती सम्यग्दृष्टिसे लेकर सम्यग्दृष्टिके एक वलिकाल होने तक यहाँ पर भुमारसंक्रम सम्भव है, क्योंकि यहाँ पर होनेवाली निर्जरासे संक्रमके योग्यरूपसे प्राप्त होनेवाले समयबद्ध के बहुत होने पर वहाँ पर भुजगार संक्रमकी सम्भावना स्पष्टरूप से उपलब्ध होती है इसलिए इस स्थल पर जीव मिथ्यात्वके भुजगार संक्रमका स्वामी होता है यह सिद्ध हुआ । अब यहाँ पर भुजगार संक्रम है ही इस निश्चयका निषेध करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
* मात्र सर्वत्र आवलिकालके भीतर भुजगारसंक्रम न होकर उसका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल एक समय कम एक आवलि है ।
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