Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
बंधगो ६
जाव चरिमसमयमिच्छाइट्ठि त्ति । एत्थ जे समयपबद्धा ते समयपबडे पढमसमयसम्माइट्ठित्ति ण संकामेह । सेकालप्पहुडि जस्स जस्स बंधावलिया पुरणा तदो तदो सो संकामिज्जदि । एवं पुव्वुष्पाइदेण सम्मत्तेण जो सम्मत्तं पडिवज्जइ तं दुसमयसम्माइट्ठिमादिं काढूण जाव आवलियसम्माइट्ठिति तावमिच्छत्तस्स भुजगारसंकमो होज्ज ।
§ ३१८. एदस्स सुत्तस्स अत्थो बुच्चदे । तं जहा - जो जीवो पुव्वुप्पण्णेण सम्मत्तेण मिच्छत्तादो सम्मत्तं गंतूण पुणो अविणट्ठवेदगपाओग्गकालब्भंतरे चैव सम्मत्तमुवगओ तस्स पढमसमयसम्म इट्ठस्स मिच्छत्तं चिराणसंतकम्मं सव्वमेव संकमपाओग्गं होइ । तं पुण सो विज्झादसंकमेणावत्तव्त्रभावेण संकामेदि त्ति पण तत्थ भुजगारसंकमसंभवो । किंतु मिच्छाइट्ठिचरिमावलियणवकबंध समयपत्रद्धे अस्सिऊण तस्स विदियादिसमएस भुजगारसंकमो संभवइ । तं कधमावलियचरिमसमयमिच्छाइट्टिप्पहुडि जाव चरिमसमयमिच्छाइट्ठति । एत्यंतरे जे बद्धा समयपत्रद्धा ते पढमसमयसम्माइट्ठी ण संकामेइ । कुदो १ तत्थ तेसि बंधावलियाएं असमत्तीदो। णवरि आवलियचरिमसमयमिच्छाइट्टिणा बद्धसमयपबद्धो तत्थ संकमपाओग्गो होदि; मिच्छाइट्ठिचरिमसमए पूरिदबंधावलियत्तादो । जइ एवं, तमादि चरम समयवर्ती मिथ्यादृष्टिसे लेकर अन्तिम समयवर्ती मिथ्यादृष्टि तक इस अन्तकालमें जो समयमबद्ध हैं उन समयबद्धों को प्रथम समयवर्ती सम्यग्दृष्टि जीव नहीं संक्रमाता है तदनन्तर कालसे लेकर जिस जिसकी बन्धावलि पूर्ण होती जाती है वहाँ से लेकर उस उस समयबद्धको वह संक्रमाता है । इस प्रकार पहले उत्पन्न किये गये सम्यक्त्वके साथ जो सम्यक्त्वको प्राप्त होता है उस सम्यग्दृष्टिके दूसरे समय से लेकर सम्यग्दृष्टि होने के एक आवलि काल तक वह मिथ्यात्वका भुजगार संक्रामक है ।
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§ ३१ . अब इस सूत्रका अर्थ कहते हैं। यथा- - जो जीव पहले उत्पन्न किये गये सम्यक्त्वके साथ मिध्यात्वसे सम्यक्त्वको प्राप्त करके पुनः नहीं नष्ट हुए वेदककालके भीतर ही सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ है उस प्रथम समयवतीं सम्यग्दृष्टिके मिथ्यात्वका प्राचीन सत्कर्म सभी संक्रमणके योग्य है । परन्तु उसे वह विध्यातसंक्रमके द्वारा अवक्तव्य रूपसे संक्रमाता है, इसलिए वहाँ पर भुजगारसंक्रम सम्भव नहीं है। किन्तु मिध्यादृष्टिको अन्तिम आवलिके नवकबन्ध समयप्रबद्धों का आलम्बन लेकर उसके द्वितीयादि समयोंमें भजगार संक्रम सम्भव है ।
शंका- सो कैसे ?
समाधान — उक्त श्रावलिके चरम समयवर्ती मिथ्यादृष्टिसे लेकर अन्तिम समयवर्ती मिथ्यादृष्टिके होने तक इस अन्तराल में जो समयप्रबद्ध बन्धको प्राप्त हुए हैं उन्हें प्रथन समयवर्ती सम्यग्दृष्टि जीव नहीं संक्रमाता है, क्योंकि वहाँ पर उनकी बन्धावलि समाप्त नहीं हुई है । इतनी विशेषता है कि उक्त आवलिके अन्तिम समयवर्ती मिध्यादृष्टिके द्वारा बन्धको प्राप्त हुआ समयप्रबद्ध
१. 'त' ता० । २. 'सुत्ते सूत्त" ता० ।