Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा०५८]
उत्तरपयांडपदेससंकमे भुजगारो ६ ३३०. कुदो ? तत्थ गुणसंकमणियमदंसणादो ।
खवगस्स वा जाव गुणसंकमेण संछुहदि सम्मामिच्छत् ताव भुजगारसंकामगो।
६३३१. कुदो १ दंसणमोहक्खवयापुबकरणपडमसमयप्पहुडि जाव सव्वसंकमो त्ति ताव सम्मामिच्छत्तस्स गुणसंकमसंभववसेण तत्थ भुजगारसिद्धीए विसंवादाभावादो।
* पढमसम्मत्तमुप्पादयमाणयस्स वा तदियसमयप्पहुडि जाव विज्झादसंकमपढमसमयादो त्ति।
६३३२. णिस्संतकम्मिय मिच्छाइट्ठिणा पढमसम्मत्ते उप्पादिदे पढमसमयम्मि सम्मामिच्छत्तस्स संतं होदूण विदियसमए अवत्तव्वसंकमो होइ । पुणो तदियादिसमएसु गुणसंकमवसेण भुजगारसंकमो होदूण गच्छदि जाव विज्झादसंकमपारंभपढमसमयो ति । एवं णिस्संतकम्मिय मिच्छाइढि पडुच्च वुत्तं । संतकम्मिय मिच्छाइहिणा पुण उवसमसम्मत्ते समुप्पाइदे तप्पढमसमयप्पहुडि जाव गुणसंकमचरिमसमयो ति ताव भुजगारसंकमसामित्तम विरुद्धं दट्टव्वं; उव्वेन्लणसंक्रमादो गुणसंकमपारंभसमए चेव भुजगारसंभवं पडि विरोहाभावादो। एवमेसो सम्मामिच्छत्तस्स भुजगारसंकमसामित्तविसयो तीहि पयारेहि णिहिट्ठो । जदो एदं देसामासियं तदो सम्माइद्विणः मिच्छत्ते पडिवण्णे तप्पढमसमयम्मि
६३३०. क्योंकि वहाँ पर गुणसंक्रमका नियम देखा जाता है ।
* अथवा क्षपकके जब तक गुणसंक्रमके द्वारा सम्यग्मिथ्यात्वका संक्रमण होता है तव तक वह उसका भुजगारसंक्रामक है।
६३३१. क्योंकि दर्शनमोहनीयके क्षपकके अपूर्वकरणके पहले समयसे लेकर सर्वसंक्रम होने तक सम्यग्मिथ्यात्वका गुणसंक्रम सम्भव होनेसे वहाँ भुजगारकी सिद्धिमें कोई विसंवाद नहीं है। ___* अथवा प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न कर तीसरे समयसे लेकर विध्यातसंक्रमके प्रथम समयके प्राप्त होने तक सम्यग्मिथ्यात्वका भुजगारसंक्रामक है।
६३३२. सम्यग्मिथ्यात्वकी सत्तासे रहित मिथ्यादृष्टि जीवके द्वारा प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न करने पर प्रथम समयमें सम्यग्मिथ्यात्वका सत्व होकर दूसरे समयमें अवक्तव्यसंक्रम होता है । पुनः तृतीय आदि समयोंमें गुणसंक्रमवश भजगारसंक्रम होकर विध्यातसंक्रमके प्रारम्भके प्रथम समयके प्राप्त होने तक जाता है । यह सम्यग्मिथ्यात्वकी सत्तासे रहित मिथ्यादृष्टिकी अपेक्षा कथन किया है। सत्कर्म मिथ्यादृष्टि के द्वारा तो उपशमसम्यक्त्व उत्पन्न करने पर उसके पहले समयसे लेकर गुणसंक्रमके अन्तिम समय तक भुजगारसंक्रमका स्वामित्व निर्विरोध जानना चाहिए, क्योंकि उद्वेलनासंक्रमके बाद गुणसंक्रमके प्रारम्भ होनेके समयमें ही भुजगार सम्भव होनेके प्रति कोई विरोध नहीं आता । इस प्रकार सम्यग्मिथ्यात्वका भुजगारसंक्रमविषयक यह निर्देश तीन प्रकारसे कहा है। यतः यह देशामर्षक है अतः सम्यग्दृष्टि जीवके मिथ्यात्वको प्राप्त होने पर उसके प्रथम