Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो ६ * मायासंजलणे जहएणपदेससंकमो विसेसाहिओ।
६२५६. कुदो ? दोहं पि समयपबद्धमाणत्ताविसेसे वि णोकसायभागादो कसायभागस्स पयडिविसेसमेत्तेणाहियत्तदंसणादो।
ॐ हस्से जहएणपदेससंकमो असंखेज्जगुणो।
६ २६०. कुदो ? अधापयत्तभागहारो बद्विददिवड्डगुणहाणिमेत्तेई दियसमयपबद्धेसु असंखेज्जाणं पंचिदियसमयपबद्धाणमुवलंभादो।
® रदीए जहएणपदेससंकमो विसेसाहिओ। ५ २६१. केत्तियमेत्तेण ? पयडिविसेसमेत्तेण । ॐ दुगुंछाए जहएणपदेससंकमो संखेजगणो । २६२. कुदो ? हस्सरदिपडिवक्खबंधकाले वि दुगुछाए बंधसंभवादो।
भए जहएणपदेससंकमो विसेसाहित्रो। ६२६३. कुदो? पयडिविसेसादो। ॐ लोभसंजलणे जहएणपदेससंकमो विसेसाहिो ।
६२६४. केत्तियमेत्तेण ? चउभागमेत्तेण। कुदो?णोकसायपंचभागमेत्तेण भयदव्वेण कसायचउभागमेतलोहसंजलणजहण्णसंक्रमदधे ओवहिदे सचउभागेगरूवागमदंसगादो।
* उससे मायासंज्वलनका जघन्य प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है।
६२५६. क्योंकि दोनोंके ही समयप्रबद्धोंके प्रमाणमें विशेषताके नहीं होने पर भी नोकषायके भागसे कषायका भाग प्रकृतिविशेष होनेके कारण अधिक देखा जाता है।
* उससे हास्यको जघन्य प्रदेशसंक्रम असंख्यातगुणा है ।
६२६०. क्योंकि अधःप्रवृत्तभागहारसे भाजित डेढ़ गणहानिप्रमाण एकेन्द्रिय सम्बन्धी समयप्रबद्धोंमें असंख्यात पञ्चेन्द्रियसम्बन्धी समयप्रबद्ध उपलब्ध होते हैं ।
* उससे रतिका जघन्य प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। ६२६१. कितना अधिक है ? प्रकृति विशेषमात्र अधिक है। * उससे जुगुप्साका जघन्य प्रदेशसंक्रम संख्यातगुणा है ।
६२६२. क्योंकि हास्य और रतिकी प्रतिपक्ष प्रकृतियोंक बन्धके समय भी जुगप्साका बन्ध सम्भव है।
* उससे भयका जघन्य प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है।
२६३. क्योंकि यह प्रकृति विशेष है। * उससे लोभसंज्वलनका जघन्य प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है।
६२६४. कितना अधिक है ? चतुर्थ भागमात्र अधिक है, क्योंकि नोकषायोंके पाँचवें भागमात्र भयके द्रव्यसे कषायोंके चतुर्थ भागमात्र लोभसंज्वलनके जघन्य संक्रमद्रव्यको भाजित करने पर चतुर्थभागके साथ एक पूर्णाङ्ककी प्राप्ति देखी जाती है (41x%3D%3D१)।