Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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उत्तरपयडिपदेससंकमे अप्पा बहुअं
* हस्से उक्कस्सपदेससंकमो असंखेज्जगुणो ।
९ २१३. कुदो ? दोहं देसघादित्ताविसेसेवि अधापवत्तसव्त्रसंकमविसयसामित्त - भेदावलंबणेण तहाभावसिद्धीए विरोहाभावादो ।
* रदीए उक्कस्सपदेससंकमो विसेसाहिओ । ९ २१४. पयडिविसेसेण ।
गा० ५८ ]
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* इत्थिवेदे उक्कस्सपदेससंकमो संखेज्जगुणो ।
२१५. कुदो १ हस्सरइबंधगद्ध दो संखेज्जगुणकुरवित्थिवेदबंधगद्धाए संचिदत्तादो । * सोगे उक्कस्सपदेससंकमो विसेसाहिओ ।
६ २१६. एत्थ वि अद्धा विसेसमस्सिऊण संखेज्जभागाहियत्तं दट्ठव्वं कुरवित्थिवेदबंधगद्धादो रइयाणमरदिसोगबंधगद्धाए संखेजभागन्भहियत्तदंसणादो ।
* अरदोए उक्कस्सपदेससंकमो विसेसाहिओ ।
६ २१७. पयडिविसेसमेत्तमेव कारणमेत्थाणुगंतव्वं ।
* एवुंसयवेदे उक्कस्सपदेससंकमो विसेसाहियो ।
६ २१८. कुदो ? अद्धाविसेसमस्सिऊण हस्सरइबंधगद्धाए संखेज्जभागसंचयस्स अहियत्वलंभादो ।
* उससे हास्यका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम असंख्यातगुणा है ।
६ २१३. क्योंकि देशघातिरूपसे दोनोंमें भेद नहीं है तो भी अधः प्रवृत्तसंक्रम और सर्वसंक्रमविषयक स्वामित्वरूप भेदका अवलम्बन करनेसे उस प्रकारकी सिद्धि होनेमें कोई विरोध नहीं आता ।
* उससे रतिका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है । ६२१४. इसका कारण प्रकृति विशेष है ।
* उससे स्त्रीवेदका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम संख्यातगुणा है ।
§ २१५. क्योंकि हास्य और रतिके बन्धककालसे संख्यातगुणे कुरुक्षेत्रसम्बन्धी स्त्रीवेदके बन्धककाल द्वारा इसका समय हुआ है ।
* उससे शोकका उत्कृष्ट प्रदेशसञ्चय विशेष अधिक है ।
§ २५६. यहाँ पर भी कालविशेषका आश्रय कर संख्यातभाग रूपसे अधिकता जाननी चाहिए, क्योंकि कुरुक्षेत्र में स्त्रीवेद के बन्धककालसे नारकियोंमें अरति-शोकका बन्धककाल संख्यातवें भाग अधिक देखा जाता है ।
* उससे अरतिका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है ।
२१७. यहाँ पर प्रकृतिविशेष मात्र कारण जानना चाहिए ।
* उससे नपुंसकवेदका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है ।
२१८. क्योंकि कालविशेषका आश्रय कर हास्य रतिके बन्धककालसे संख्यात भागमें हुए सञ्चयमें विशेष अधिकता उपलब्ध होती है ।