Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो ६ * कोधे उपस्सपदेससंकमो विसेसाहिओ।
मायाए उकस्सपदेससंकमो विसेसाहित्रो । ॐ लोहे उक्कस्सपदेससंकमो विसेसाहित्रो।
पञ्चक्खाणमाणे उकस्सपदेससंकमो विसेसाहिो । * कोहे उकस्सपदेससंकमो विसेसाहिओ। ॐ मायाए उकस्सपदेससंकमो विसेसाहित्र । ॐ लोहे उकस्सपदेससंकमो विसेसाहित्रो। ६ २२६. एत्थ सव्वत्थ पयडिविसेसमेतमेव विसेसाहियत्तकारणमणुगंतव्वं ।
मिच्छुत्ते उक्कस्सपदेससंकमो असंखेजगुणो।
६ २३०. किं कारणं १ अधापवत्तसंकमादो पुचिन्लादो गुणसंकमदव्यस्सेदस्सासंखेज्जगुणत्ते विसंवादाणुवलंभादो।
ॐ अणंताणुबंधिमाणे उकस्सपदेससंकमो असंखेजगुणो ६२३१. केण कारणेण ? सव्वसंकमेण पडिलद्ध कस्स भावत्तादो।
कोधे उकस्सपदेससंकमो विसेसाहियो । मायाए उकस्सपदेससंकमो विसेसाहित्रो।
* उससे अप्रत्याख्यान क्रोधका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। * उससे अप्रत्याख्यानमायाका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। * उससे अप्रत्याख्यानलोभका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है । * उससे प्रत्याख्यानमानका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। * उससे प्रत्याख्यानक्रोधका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। * उससे प्रत्याख्यानमायाका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। * उससे प्रत्याख्यानलोभका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। ६ २२६. यहाँ सर्वत्र प्रकृति विशेषमात्र ही विशेष अधिकपनेका कारण जानना चाहिए। * उससे मिथ्यात्वमें उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम असंख्यातगुणा है।
६२३०. क्योंकि पहलेके अधःप्रवृत्तसंक्रमसे इस गुणसंक्रमद्रव्यके असंख्यातगुणे होनेमें विसंवाद नहीं पाया जाता।
* उससे अनन्तानुबन्धोमानका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम असंख्यातगुणा है । ६२३१. क्योंकि सर्वसंक्रमके द्वारा इसका उत्कृष्ट द्रव्य प्राप्त हुआ है। * उससे अनन्तानुबन्धीक्रोधका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। * उससे अनन्तानुबन्धीमायाका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है।