Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
२६६
गा०५८] उत्तरपयडिपदेससंकमे अप्पाबहुअं
. २६६ * मायासंजलणे उकस्सपदेससंकमो विसेसाहित्रो। ६ २२४. केत्तियमेत्तेण १ छबभागमेत्तेण । तस्स संदिट्ठी ३५ ।
एवमोघप्पाबहुअमुक्कस्सं समत्तं ।। ६ २२५. एत्तो आदेसप्पाबहुअपरूवणट्ठमुत्तरसुत्तपबंधमाह8 णिरयगईए सव्वत्थोवो सम्मत्ते उक्कस्सपदेससंकमो।
६२२६. कुदो १ मिच्छत्तादो गुणसंकमेण पडिच्छिददव्यमघापवत्तभागहारेण खंडिदेयखंडपमाणत्तादो।
* सम्मामिच्छत्ते उकस्सपदेसंसंकमो असंखेज्जगुणो। - ६२२७. कुदो ? दोण्हमेयविसयसामित्तपडिलमे वि सम्मत्तमूलदब्बादो सम्मामिच्छत्तमूलदव्वस्सासंखेज्जगुणत्तमस्सिऊण तहाभावसिद्धीदो।
* अपचक्खाएमाणे उकस्सपदेससंकमो असंखेजगुणो। ६२२८. दोण्हमधापवत्तसंकमविसयत्ते वि . दरगयविसेसोवलंभादो। तं कधं ? मिच्छत्तदव्वं गुणसंकमभागहारेण खंडिदेयखंडमेत्तं सम्मामिच्छत्तदव्वं अधापवत्तभागहार पडिभागेण संकमदि । अपचक्खाणमाणदव्वं पुण मिच्छत्तादो पयडिविसेसहीणं होऊणाधापवत्तसंकमेण उक्कस्सं जादमेदेण कारणेण ततो एदस्सासंखेज्जगुणत्तं सिद्ध।
* उससे मायासंज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। ६ २२४. कितना अधिक है ? छठवाँ भागमात्र अधिक है। उसकी संदृष्टि ३५ है।
इस प्रकार उत्कृष्ट ओघ अल्पबहुत्व समाप्त हुआ। ६ २२५. आगे आदेश अल्पबहुत्वका कथन करनेके लिए आगेके सूत्र प्रबन्धको कहते हैं* नरकगतिमें सम्यक्त्वका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम सबसे स्तोक है।
६२२६. क्योंकि मिथ्यात्वके द्रव्यमें से गुणसंक्रमके द्वारा संक्रमित हुए द्रब्यको अधःप्रवृत्तभागहारसे भाजित करके जो एक भाग लब्ध आवे तत्प्रमाण सम्यक्त्वका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम है। - *उससे सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम असंख्यातगुणा है।
६२२७. क्योंकि दोनोंका स्वामित्व एक विषयको अवलम्बन करनेवाला है तो भी सम्यक्त्व के मूलद्रव्यसे सम्यग्मिथ्यात्वका मूल द्रव्य असंख्यात गुणा है, इसलिए उस प्रकारकी सिद्धि होती है।
* उससे अप्रत्याख्यानमानका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम असंख्यातगुणा है।
६२२८. क्योंकि ये दोनों अधःप्रवृत्तसंक्रमको विषय करते हैं तो भी द्रव्यगत विशेषता उपलब्ध होती है।
शंका-वह कैसे ?
समाधान-मिथ्यात्वके द्रव्यको गुणसंक्रम भागहारके द्वारा भाजित करके जो एक भाग लब्ध आवे उतना सम्यग्मिथ्यात्वका द्रव्य है जो अधःप्रवृत्तभागहारके प्रतिभागरूपसे संक्रमित होता है । परन्तु अप्रत्याख्यान मानका द्रव्य मिथ्यात्वसे प्रकृति विशेष रूपसे हीन होकर अधःप्रवृत्तसंक्रमके द्वारा उत्कृष्ट हुआ है। इस कारणसे उससे यह असंख्यात गुणासिद्ध होता है।