Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
२६६
जयधवलास हिदे कसायपाहुडे
* मायाए उक्कस्सपदेससंकमो विसेसाहिओ । * लोभे उक्कस्सपदेससंकमो विसेसाहिओ । * अणताणुबंधिमाणे उक्कस्सपदेससंकमो विसेसाहियो । * कोहे उक्कस्सपदेससंकमो विसेसाहिओ ।
[ बंधगो ६
* मायाए उक्कस्सपदेससंकमो विसेसाहिओ ।
* लोभे उक्कस्सपदेस संकमो विसेसाहिओ ।
२०६. दाणि सुत्ताणि पयडिविसेसमेत्तकारणपडिबद्धाणि सुगमाणि । * मिच्छत्तस्स उक्कस्सपदेससंकमो· विसेसाहिओ ।
९ २१०. केत्तियमेत्तेण ? आवलि० असंखे ० भागेण खंडिदेय खंडमेत्तेण ।
* सम्मामिच्छत्ते उकस्सपदेससंकमो विसेसाहिओ ।
$ २११. मिच्छतं कामिय पुणो जेण कालेन सम्मा मिच्छत्तं सव्त्रसंकमेण संकामेदि तकालव्भंतरे णट्ठासेसदव्त्रं सम्मामिच्छत्तमूलदव्यादो असंखेजगुणहीणं ति कट्टु, तत्थ तम्मि सोहि सुद्धसमेत्ते विसेसाहियत्तमिदि वृत्तं होइ ।
* लोहसंजलणे उक्कस्सपदेससंकमो अतगुणो । ९ २१२. कुदो देसघादित्तादो ।
* उससे प्रत्याख्यानमायाका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है । * उससे प्रत्याख्यानलोभका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है । * उससे अनन्तानुबन्धीमानका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है । * उससे अनन्तानुबन्धीक्रोधका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है । * उससे अनन्तानुबन्धीमायाका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है । * उससे अनन्तानुबन्धीलोभका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है । २०६. ये सूत्र प्रकृति विशेषमात्र कारण से सम्बन्ध रखते हैं, इसलिए सुगम हैं । * उससे मिथ्यात्वका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है ।
२१०. कितना अधिक है ? आवली के असंख्यातवें भागका भाग देने पर जो एक भाग लब्धश्रवे उतना अधिक है ।
* उससे सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है ।
§ २११. मिध्यात्वको संक्रमण करके पुनः जितने कालमें सम्यग्मिथ्यात्वका सर्वसंक्रमके द्वारा संक्रमण करता है उस कालके भीतरं नष्ट हुआ समस्त द्रव्य मिथ्यात्व के मूल द्रव्यसे असंख्यात गुणाहीन है ऐसा समझकर उसे उसमेंसे कम कर देने पर जो शेष बचे उतना विशेष अधिक है यह उक्त कथनका तात्पर्य है ।
* उससे लोभसंज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम अनन्तगुणा है । १२१२. क्योंकि यह देशघाति प्रकृति है ।