Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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उत्तरपय डपदैससंकमे पोसणं
२६१
९ १६८. देवेसु मिच्छ० जह० पदे० संका० लोगस्स असंखे० भागो । अजह० लोग० असंखे० भागो अट्ठचोदस० देसूणा | सम्म० सम्मामि० जह० अजह० पदे ०संका ० लोग० असंखे ० भागो, अट्ठणत्र चोहस० देखणा । सेसाणं जह० खेत्तं । अजह० [लोग • असंखे ०] अट्टणव चोदस० देसूणा । एवं सव्वदेवाणं । वरि सगपोसणं दव्धं । वरि जोदिसि० सम्म० सम्मामि० जह० पदे ० संका० लोग० असंखे० भागो, अट्ठचोद० दे० | अजह ० लो० असंखे०भागो अद्भुट्ठअट्टण चोदस० देखणा । एवं जाव० ।
अट्ठ
गा० ५८
पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिकमें भी बन जाता है । इसलिए इनमें उक्त तीनों प्रकृतियोंके जघन्य और अजघन्य प्रदेशों के संक्रामकोंका स्पर्शन सामान्य तिर्यञ्चोंके समान कहा हैं। सोलह कषाय और नौ नोकपायोंके जघन्य प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण प्राप्त होने से उसे क्षेत्रके समान जानने की सूचना की है । तथा उक्त तिर्यञ्चों के सर्वत्र इनका जघन्य प्रदेशसंक्रम सम्भव है, अतः उक्त तिर्यञ्चोंके स्पर्शनको देखकर यहाँ पर इनके जघन्य और अजघन्य प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन सर्वलोकप्रमाण कहा हैं । पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकों में यह स्पर्शन
विल बन जाता है इसलिए उनमें पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चत्रिक के समान जानने की सूचना की है । मात्र इनमें मिथ्यात्वका संक्रम नहीं होता, इसलिए उसका निषेध किया है। मायके जघन्य और अजवन्य प्रदेशों के संक्रामक जीव सम्यग्दृष्टि होते हैं और मनुष्योंमें ऐसे जीवोंका स्पर्शनं लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है जो तीनों प्रकारके मनुष्यों में सम्भव है । मात्र इस विशेषता को छोड़कर अन्य सब स्पर्शन इनमें उक्त अपर्याप्त जीवोंके समान बन जानेसे उनके समान जानने की सूचना की है।
१६८. देवों मिथ्यात्व के जघन्य प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सनालीके कुछ कम आठ बंटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व जघन्य और अजघन्य प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण तथा त्रसनालीके कुछ कम आठ और कुछ कम नौ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंके स्पर्शनका भङ्ग क्षेत्रके समान है ।
जघन्य प्रदेशों के संक्रामक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण तथा त्रसनालीके कुछ कम आठ और कुछ कम नौ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी कार सब देव जानना चाहिए | इतनी विशेषता है कि अपना-अपना स्पर्शन ले जाना चाहिए। इतनी और विशेषता है कि ज्योतिषी देवोंमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व के जघन्य प्रदेशोंक सक्रामक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण तथा त्रसनालीके कुछ कम साढ़े तीन और कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अजघन्य प्रदेश के संक्रामक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण तथा नालीके कुछ कम साढ़े तीन, कुछ कम आठ और कुछ कम नो बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया हैं । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
विशेषार्थ – ज्योतिषी देवोंको जघन्य आयु पल्यके आठवें भागसे कम नहीं होती, अतएव इनमें इसके पूर्व मारणान्तिक समुद्घात सम्भव नहीं है । यही कारण है कि इनमें सम्यक्त्व और