Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा०५८] उत्तरपयडिपदेससंकमे सामित्त
१८३ कलावेण संकिलेसादो णियत्तिदूण विसोहिसमावरणेण पढमसम्मत्तमुप्पाइय तत्कालभतरे चेत्र अणताणुबंधिविसंओयणाए परिणदो त्ति जाणाविदं, अण्णहा पयदुक्कस्ससामित्तविहाणाणववत्तीदो । एवं विसंजोएमाणस्स तस्स णेरइयस्स चरिमट्ठिदिखंडयं चरिमसमयसंछुहमाणयस्स तेसिमर्णताणुबंधीणमुक्कस्सओ पदेससंकमो होदि, तत्थ सव्वसंकमेणाणताणुवंघिदव्यस्स कम्मट्ठिदिअब्भंतरसंगलिदस्स थोवणस्स सेसकसायाणमुवरि संकमंतस्सुक्कस्सभावसिद्धीए विरोहाभावादो।
अट्ठण्हं कसायाणमुक्कस्सो पदेससंकमो कस्स ? ६.४२. सुगमं ।
* गुणिदकम्मंसिओ सव्वलहुं मणुसगइमागदो, अट्ठवस्सिो खवणाए अब्भुढिदो, तदो अहण्हं कसायाणमपच्छिमहिदिखंडयं चरिमसमयसंछुहमाणयस्स तस्स अट्ठएहं कसायाणमुक्कस्सो पदेससंकमो।
६४३. गयत्थमेदं सुत्तं । एवमट्ठकसायाणं सामित्तविणिण्णयं कादण छण्णोकसायाणं पि एसो चेव सामित्तालावो काययो, विसेसाभावादो त्ति पदुप्पायणट्ठमप्पणासुत्तं भणइ
* एवं छपणोकसायाणं । ४४. सुगममेदमष्पणासुत्तं ।
'तदो तेण रहस्सकालेण सम्म्मत्तमुप्पाइदं' इत्यादि रूपसे जो सूत्र वचनकलाप कहा है सो उस द्वारा संक्लेशसे निवृत्त होकर विशुद्धिको १ भीतर ही अनन्तानुबन्धियोंकी विसंयोजनासे परिणत हुआ यह ज्ञान कराया गया है, अन्यथा प्रकृत उत्कृष्ट स्वामित्वका विधान नहीं बन सकता। इस प्रकार विसंयोजना करनेवाले उस नारकीके अन्तिम स्थितिकाण्डकको संक्रमित करनेके अन्तिम समयमें उन अनन्तानुबन्धियोंका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है, क्योंकि वहाँ पर कर्मस्थितिके भीतर गल कर थोड़े कम हुए तथा शेष कषायोंके ऊपर संक्रमण करते हुए अनन्तानुबन्धीके द्रव्यके उत्कृष्टभावकी सिद्धिमें विरोध नहीं पाता। ___ * आठ कपायोंका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम किसके होता है ?
६ ४२. यह सूत्र सुगम है।
* कोई गुणितकर्मा शिक जीव अतिशीघ्र मनुष्यगतिमें आया । तथा आठ वर्षका होकर क्षपणाके लिए उद्यत हुआ । अनन्तर आठ कपायोंके अन्तिम स्थितिकाण्डकका अन्तिम समयमें संक्रम करते हुए उसके आठ कषायोंका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रभ होता है ।
६४३. यह सूत्र गतार्थ है। इस प्रकार आठ कपायोंके स्वामित्वका निर्णय करके छह नोकषायोंका भी इसी प्रकार स्वामित्वालाप करना चाहिए, क्योंकि उसमें कोई अन्य विशेषता नहीं है इस प्रकार कथन करनेके लिए अर्पणसूत्रको कहते कहते हैं
* इसी प्रकार छह नोकषायोंका उत्कृष्ट स्वामित्व जानना चाहिए। ६४४. यह अर्पणासूत्र सुगम है ।