Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा०५८] उत्तरपयडिपदेससंकमे सण्णियासो
२३७ * सएिणयासो। ६ १३४. एत्तो उवरि सण्णियासो अहिकाओ ति अहियार पडिबोहण सुत्तमेदं ।
ॐ मिच्छत्तस्स उकस्सपदेससंकाममओ सम्मत्ताणताणुबंधीणमसंकाममो।
१३५. कुदो १ सम्माइडिम्मि सम्मत्तस्स संकमाभावादो, अर्णताणुबंधीणं च पुत्रमेव विसंजोइयत्तादो।
सम्मामिच्छत्तस्स णियमा अणुकस्सं पदेसं संकामदि। ६ १३६. कुदो १ मिच्छत्तुक्कस्सपदेससंकमं पडिच्छिऊण अतोमुहुरेण सम्मामिच्छतस्स उक्कस्स पदेससंकमुप्पत्तिदंसणादो।
उक्कस्सादो अणुकस्समसंखेज्जगुणहीणं । ६ १३७. कुदो ? सम्मामिच्छत्तुकस्सपदेससंकमादो सव्वसंकमसरूवादो एत्थतणसंकमस्स गुणसंकमसरुवस्स असंखे०गुणहीणत्ते संदेहाभावादो। प्रदेशसंक्रामकका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर एक समय है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
विशेषार्थ-इन देवोंमें मि यात्व आदि २३ प्रकृतियोंमेंसे कुछका जघन्य प्रदेशसंक्र या तो भवस्थितिके प्रथम समयमें या अन्तिम समयमें प्राप्त होनेसे यहां इनके जघन्य और अजघन्य प्रदेशसंक्रमके अन्तरकालका निषेध किया है। तथा चार नोकषायोंका जघन्य प्रदेशसंक्रम वहाँ उत्पन्न होनेके अन्तमुहर्त बाद प्राप्त होता है। यतः यह एक पर्यायमें दो बार सम्भव नहीं है, इस लिए इनके जघन्य प्रदेशसंक्रमके अन्तरकालका निषेध कर अजघन्य प्रदेशसंक्रमका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल एक समय कहा है।
इस प्रकार एक जीवकी अपेक्षा अन्तरकाल समाप्त हुआ। * अब सनिकर्षका अधिकार है।।
६ १३४. इससे आगे अर्थात् एक जीवकी अपेक्षा अन्तरकालके कथनके बाद अब सन्निकर्ष अधिकार प्राप्त है इस प्रकार अधिकारका ज्ञान करानेवाला यह सूत्र है।
_*मिथ्यात्वके उत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक जीव सम्यक्त्व और अनन्तानुबन्धियोंका असंक्रामक होता है।
६ १३५. क्योंकि सम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें सम्यक्त्वका प्रदेशसंक्रमण नहीं होता और अनन्तानुबन्धियोंकी पहले ही विसंयोजना हो लेती है।
* वह सम्यग्मिथ्यात्वके नियमसे अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रमण करता है।
६१३६. क्योंकि मिथ्यात्वके उत्कृष्ट प्रदेशोंका अन्य प्रकृतियोंमें संक्रमण करनेके अन्तमुहूर्त बाद सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रमणकी उत्पत्ति देखी जाती है।
* किन्तु वह अनुत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम अपने उत्कृष्टकी अपेक्षा अनन्तगुणाहीन होता है।
६१३७. क्योंकि सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम सर्वसंक्रमस्वरूप है, और यहाँ पर होनेवाला संक्रम गुणसंक्रम स्वरूप है, अतः उससे यह असंख्यातगुण हीन है इसमें सन्देह नहीं है।