Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा०५८] उत्तरपयडिपदेससंकमे पोसणं
२५७ ६१६१. देवेसु मिच्छ० उक्क० पदे०संका०लोग असंखे०भागो। अणुक्क० लोग० असंखे०भागो अट्ठचोदस०देसूणा । सेसकम्माणमुक्क० खेत्तं । अणुक्क० लोग० असंखे०भागो, अट्ठ णवचोदस० देसूणा । णवरि पुरिस०-णबुंस० उक्क० पदे०संका० अट्ठचोदस० देसूणा । एवं सोहम्मीसाण ।
६१६२. भवण-वाणवे०-जोदिसि० मिच्छ० उक्क० पदे०संका० लोग० असंखे०भागो । अणुक्क० लोग० असंखे०भागो अद्भुट्ट अट्ठचोदस० देसूणा । सेसकम्माणं उक्क० पदे०संका० लोग० असंखे०भागो । अणुक० लो० असंखे०भागो, अद्वट्ठअट्ठ-णव-चोद्दसन्देसूणा ।
६ १६१. देवोंमें मिथ्यात्वके उत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण
और त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण तथा सनालीके कुछ कम आठ और नौ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इतनी विशेषता है कि पुरुपवेद और नपुंसकवेदके उत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंने त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार सौधर्म और ऐशान कल्पवासी देवोंमें जानना चाहिए।
विशेषार्थ-सम्यग्दृष्टि देवोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण होनेसे इनमें मिथ्यात्वके अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका स्पर्शन उक्त क्षेत्र प्रमाण कहा है। देवोंका उक्त स्पर्शन तो है ही। मारणान्तिक समुद्धातकी अपेक्षा इनका स्पर्शन त्रसनालीके कुछ कम नौ वटे चौदह भागप्रमाण है
और इन सब स्पर्शमोंके समय शेप सब प्रकृतियोंके अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रम होता है, इसलिए यहाँ पर देवोंमें शेष प्रकृतियोंके अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण तथा वसनाली के कुछ कम आठ और कुछ कम नौ बटे चौदह भागप्रमाण कहा है। यहाँ पर पुरुषवंद और नपुंसकवेदके उत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंके स्पर्शनमें अन्य प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंके स्पर्शनसे कुछ विशेषता है, इसलिए उसका निर्देश अलगसे किया है । बात यह है कि सौधर्म और ऐशान कल्पकी अपेक्षा सामान्य देवोंमें पुरुषवेद और नपुंसकवेदका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम विहारवत्स्वस्थान आदिके समय भी सम्भव है, इसलिए इनमें उक्त कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रामक जीवोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन वसनालीके कुछ कम आठ वटे चौदह भागप्रमाण बन जानेसे वह अलगसे कहा है। यह स्पर्शन सौधर्म और ऐशान कल्पमें अविकल घटित हो जाता है, इसलिए इसे सामान्य देवोंके समान जाननेकी सूचना की है। शेष कथन सुगम है ।
१६. भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें मिथ्यात्वके उत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण तथा त्रसनालीके कुछ कम साढ़े तीन और आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष कर्मोके उत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण तथा त्रसनालीके कुछ कम साढ़े तीन, कुछ कम आठ और कुछ कम नौ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
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