Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा०५८]
उत्तरपयडिपदेससंकमे पोसणं ६१८६. आदेसेण णेरइएसु मिच्छ० उक्क० अणुक्क० पदेससंकाम० लोगस्स असंखे० । सम्म०-सम्मामि०-सोलसक०-णवणोक० उक्क० पदे०संका० लोगस्स असंखे०. भागो । अणुक्क० लोगस्स असंखे०भागो छ चोद्दस भागा वा देसूणा । एवं विदियादि जाव सत्तमा त्ति । णयरि सगपोसणं । पढमाए खेत्तं ।।
६१६०. तिरिक्खेसु मिच्छत्तस्स उक्कस्सपदे०संका० लोग० असंखे०भागो। अणुक्कस्स० लोग० असंखे०भागो छ चोदस० देसूणा । सम्म०-सम्मामि०-उक्क० पदे०.
गतियोंके जीव होते हैं, परन्तु उनका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागसे अधिक नहीं होता। मात्र अतीत काल की अपेक्षा इनका स्पर्शन या तो विहारवत्स्वस्थान आदिकी अपेक्षा त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण और एकेन्द्रिय आदिके मारणान्तिक समुद्घात और उपपादपदकी अपेक्षा सर्वलोक प्रमाण बन जाता है। यह देखकर इनके अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण, त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण और सर्वलोक प्रमाण कहा है। तथा सोलह कषाय और नो नोकषायोंका प्रदेश संक्रमण निर्बाधरूपसे सर्वत्र सर्वदा होता रहता है, इसलिए इनके अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका स्पर्शन वर्तमान और अतीत दोनों प्रकारके कालोंकी अपेक्षा एकमात्र सर्वलोक कहा है।
६१८६. आदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्वके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सोलह कषाय
और नौ नोकषायोंके उत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और त्रसनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार द्वितीयादि पृथिवियोंके नारकियोंमें स्पर्शन जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अपना अपना स्पर्शन कइना चाहिए । पहली पृथिवीमें स्पर्शनका भङ्ग क्षेत्रके समान है।।
विशेषार्थ— मिथ्यात्वका संक्रमण सम्यग्दृष्टि ही करता है और नरक सम्यग्दृष्टियोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाणसे अधिक नहीं है इसलिए तो नारकियोंमें मिथ्यात्वके अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। तथा शेष प्रकृतियोंका संक्रमण मारणान्तिकसमुद्धात और उपपादपदके समय भी सम्भव है, किन्तु नारकियोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण ही है, इसलिए यहाँ पर शेष सब प्रकतियों के अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और असनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण कहा है। द्वितीयादि पृथिवियोंमें यह स्पर्शन इसी प्रकार बन जाता है । मात्र त्रसनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागके स्थानमें अपना-अपना स्पर्शन कहना चाहिए । पहली पृथिवीके सब नारकियोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण ही है। इनका क्षेत्र भी इतना ही है . इसलिए यहाँ पर पहली पृथिवीमें स्पर्शनको क्षेत्रके समान जाननेकी सूचना की है । शेष कथन सुगम है।
६१६०. तिर्यञ्चोंमें मिथ्यात्वके उत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और त्रसनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।