Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलास हिदे कषायपाहुडे
[ बंधगो ६
१८८. पोसणं दुविहं – जहण्णमुकस्सं च । उकस्से पयदं । दुविहो णिसो - ओघे० आदेसे ० | ओघेण मिच्छ० उक्क० पदे ० संका० केव० पोसिदं ? लोगस्स असंखे० भागो । अणुक्क० लोग० असंखे ० भागो अट्ठचोद्दस ० देसूणा । सम्म० सम्मामि० उक० पदे०संका • लोगस्स असंखे ० भागो अणुक० लोग० असंखे ० भागो, अट्ठचोद्दस भागा वा देणा सव्वलोगो वा । सोलसक० णत्रणोक० उक्क० पदेस० लोगस्स अक० सव्वलोगो ।
असंखे० भागो ।
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संक्रामक जीव
विशेषार्थ — घसे सब प्रकृतियोंमेंसे किन्हीं प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशोंके संख्यात हैं और किन्हीं प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीव असंख्यात हैं, इसलिए इनका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण प्राप्त होनेसे वह तत्प्रमाण कहा है। मात्र सोलह कषाय और पाय अष्ट प्रदेशों के संक्रामक जीव अनन्त हैं, इसलिए इनका सर्वलोक क्षेत्र प्राप्त होनेसे वह तत्प्रमाण कहा है। सामान्य तिर्यञ्चोंमें यह व्यवस्था बन जाती है, इसलिए उनमें क्षेत्र प्ररूपणाको ओघ के समान जाननेकी सूचना की है। गतिसम्बन्धी शेष मार्गणाओंका क्षेत्र ही लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं, इसलिए उनमें सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। आगे अनाहारक मार्गणा तक यह यथायोग्य इसी प्रकार घटित किया जाने योग्य है यह जानकर उसे इसी प्रकार जानने की सूचना की है । जघन्य क्षेत्रमें उत्कृष्टसे अन्य कोई विशेषता नहीं है ऐसा समझकर उसे भी इसी प्रकार ले जाने की सूचना की है।
६१. स्पर्शन दो प्रकारका है - जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है - और आदेश । श्रघसे मिथ्यात्व के उत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्र का स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अनुत्कृष्ट प्रदेशों के संक्रामक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण, त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भाग माण और सब लोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सोलह कषाय और नौ नोकषायों के उत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंने सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है ।
विशेषार्थ — घसे एक सम्यक्त्व प्रकृतिको छोड़कर शेष सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रम अपनी अपनी क्षपणा के समय यथा योग्य स्थानमें होता है । सम्यक्त्व का भी उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम स्वामित्व के अनुसार सातवें नरकके नारकीके होता है । यतः इन सब जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाणसे अधिक नहीं है, अतः श्रघसे सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका स्पर्शन उक्त प्रमाण कहा है। अब रहा अनुत्कृष्टका विचार सो मिध्यात्वका संक्रम सम्यग्दृष्टिके ही सम्भव है, अतः सम्यग्दृष्टियोंके स्पर्शनको देखकर मिथ्यात्व के अनुत्कृष्ट प्रदेशांके संक्रामक जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण कहा हे । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व के अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक चारों