Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
जयधवला सहिदे कसायपाहुडे
[ बंधगो ६
६ १८३. परिमाणं दुविहं जह० उक० च । उक्कस्से पयदं दुविहो । णि० -- ओघे ० आदेसे ० | ओघेण मिच्छ० -सम्मामि० उक० पदे ० संका० केत्तिया ? संखेजा । अणुक्क ० त्ति ० १ असंखेजा | सम्म उक्क० अणुक० पदे ० का ० केत्तिया ? असंखेज्जा । अनंतागु० चक्क० उक्क० पदे ० संका० ति० ? असंखेजा । अणुक्क० केत्ति ० १ अनंता । एवं बारसक०-णवणोक० | णवरि उक्क० पदे ० संका० केत्ति ० ? संखेज्जा । ·
२५२
1
I
$ १८४. आदेसेण रइय० सव्त्रपयडी उक्क० अणुक्क० पदे ० संका केत्ति० ? असंखेजा । एवं सव्वणेरइय- सव्त्रपंचि ० - तिरिक्खमणुस अपज्ज० देवा भवणादि जाव सहस्सार ति । तिरिक्खेसु दंसणतिय उक्क० अणुक्क० केति ? असंखेजा । सोलसक० - णवणोक० उक्क० पदे०संका० केत्ति ० ? असंखेजा । अणुक्क० केत्ति ० १ अनंता । मरणसेसु मिच्छ॰ उक्क० अणुक्क० पदे ० संका • केत्तिया ? संखेज्जा | सेसकम्माणमुक० केत्ति० ? संखेजा । अणुक्क असंखेजा । मणुसपज्ज० - मरणुसिणी सव्वदेवा उक्क० अणुक० पदे०संका • केत्ति ० १ संखेज्जा । आणदादि अवराइदा त्ति सव्वपयडी उक्क० पदे ० संका ० केत्ति ० १ संखेजा । अणुक्क० पदे ० संका० केति ० १ असंखेज्जा । एवं जाय० ।
०
६१८३. परिमाण दो प्रकारका है- जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है - प्रोध और आदेश । ओघसे मिध्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्व के उत्कृष्ट प्रदेशों के सक्रामक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । सम्यक्त्वके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशों के संक्रामक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । अनन्तानुबन्धीचतुष्कके उत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । अनुत्कृष्ट प्रदेशों के संक्रामक जीव कितने हैं ? अनन्त हैं । इसी प्रकार बारह कपाय और नौ नोकषायोंकी अपेक्षा परिमाण जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनके उत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं ।
१८४. आदेश से नारकियोंमें सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। इसी प्रकार सब नारकी, सब पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च मनुष्य अपर्याप्त सामान्य देव और भवनवासियोंसे लेकर सहस्रार कल्प तकके देवों में जानना चाहिए । सामान्य तिर्यञ्चों में दर्शनमोहनीयत्रिक के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशों के संक्रामक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं | सोलह कपाय और नौ नोकषायके उत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं ? अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके सक्रामक जीव कितने हैं ? अनन्त हैं । मनुष्यों में मिथ्यात्व के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशों के संक्रामक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। शेष कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्राम जीव असंख्यात हैं। मनुष्य पर्याप्त, मनुष्यनी और सर्वार्थसिद्धिके देवोंमें उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशों में संक्रामक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । श्रानत कल्पसे लेकर अपराजित विमान तकके देवोंमें सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशों के संक्रामक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक ले जाना चाहिए ।