Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
२४६
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ बंधगो ६
सम्म० जह० पदे० संका ० सम्मामि० णिय० अजह० असंखे ० भागब्भ० । सोलसक०णवणोक० णि० अज ० असंखे० भागब्भ० । मिच्छ० असंका० । एवं सम्मामि० । णवरि सम्म० असंका ० ।
सम्म० सम्मा मि० णिय ०
$ १६४. अनंताणु० कोधस्स जह० पदे ० संका ० अजह • असंखे० गुण भ० । बारसक० णवणोक० निय० अजह० असंखे ०३ तिन्हं कसायाणं णिय० तं तु विद्वाणपदि • अनंतभागब्भ० असंखे ० भागब्भ० वा । एवं तिन्हं कसायाणं ।
[० भागब्भ० ।
९ १६५. अपच्चक्खाणकोध० जह० पदे ० संका सम्म० सम्मामि ० - अनंताणु ० चउकभंगो । सत्तणोक० - अणतारणु०४ पिय० अजह० असंखे ० भागब्भ० दुगुं ० णिय० तं तु विद्वाणपदि ० अनंतभागब्भ० भय-दुगु छा० ।
एकारसक०-भयअसंखे ० भागन्भ० । एवमेकारसक ०
१६६. इथिवेद ० जह० पदे० संका० सम्म० सम्मामि० अणंताणु ०४ भंगो । सोलसक० - अट्टणोक० णिय० अजह० असंखे० भाग०भ० । एवं पुरिसवेद ० णव सवेद ० |
जघन्य प्रदेशोंका संक्रामक जीव सम्यग्मिथ्यात्व के नियमसे असंख्यात भाग अधिक अजघन्य प्रदेशका संक्रामक होता है । सोलह कषाय और नौ नोकषायों के नियमसे असंख्यात भाग अधिक अजघन्य प्रदेशोंका संक्रामक होता है । मिथ्यात्त्रका असंक्रामक होता है । इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्व की मुख्यता से सन्निकर्ष जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि यह सम्यक्त्वका संक्रामक होता है । १६४. अनन्तानुबन्धी क्रोधके जघन्य प्रदेशोंका संक्रामक जीव सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके नियमसे असंख्यातगुण अधिक अजघन्य प्रदेशों का संक्रामक होता है । बारह कषाय नोकषायके नियमसे असंख्यात भाग अधिक जघन्य प्रदेशोंका संक्रामक होता है । कषाय नियमसे जघन्य प्रदेशोंका भी संक्रामक होता है और अजघन्य प्रदेशोंका भी संक्रामक होता है। यदि जघन्य प्रदेशोंका संक्रामक होता है तो नियमसे अनन्तभाग अधिक या असंख्यात भाग अधिक जघन्य प्रदेशोंका संक्रामक होता है। इसी प्रकार तीन कषायोंकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए ।
§ १६५. प्रत्याख्यान क्रोध के जघन्य प्रदेशों के संक्रामक जीवके सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्वका भङ्ग अनन्तानुबन्धी चतुष्कके समान है । सात नोकषाय और अनन्तानुबन्धचतुष्कके नियमसे असंख्यात भागं अधिक अजघन्य प्रदेशोंका संक्रामक होता है । ग्यारह कषाय, भय और जुगुप्सा के नियमसे जघन्य प्रदेशों का भी संक्रामक होता है और अजघन्य प्रदेशोंका भी संक्रामक . होता है । यदि अजघन्य प्रदेशों का संक्रामक होता है तो नियमसे अनन्तभाग अधिक या असंख्यात भाग अधिक द्विस्थानपतित अजघन्य प्रदेशोंका संक्रामक होता है । इसी प्रकार ग्यारह कषाय, भय साकी मुख्यता से सन्निकर्ष जानना चाहिए ।
९ १६६. स्त्रीवेदके जघन्य प्रदेशों के संक्रामक जीवके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भङ्ग अनन्तानुबन्धचतुष्कके समान है । सोलह कषाय और आठ नोकषायोंके नियमसे असंख्यात भाग अधिक जघन्य प्रदेशोंका संक्रामक होता है । इसी प्रकार पुरुषवेद और नपुंसकवेदकी मुख्यतासे सन्निकर्षे जानना चाहिए ।