Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ५८] उत्तरपयडिपदेससंकमे सण्णियासो अणंतभागही असंखे भागहो० । एवं पण्णारसक०-छग्णोक० ।
६१५६. इत्थिवे. उक्क० पदे०संका० मिच्छ०-सम्मामि०-सोलसक०-अट्ठणोक० णिय० अणुक० असंखे भागहीणं । एवं पुरिस० णवंस० । एत्थ सव्वत्थ तिवेदसण्णियासो परिसाहिय वत्तव्यो । एवं जाव० ।
एवमुकस्ससण्णियासो समत्तो । ॐ सव्वेसिं कम्माणं जहणणसपिणयासो वि साहेयव्वो।
६१५७. एदेण सुत्तेण जहण्णसण्णियासो ओघादेसभेयमिण्णो सवित्थरमेत्थाणुगंतव्यो ति सिस्साणमत्थसमप्पणं कयं होइ। संपहि एदेण सुत्तेण सूचिदत्थविवरणमुच्चारणाबलेणाणुवत्तइस्सामो। तं जहा-जह० पय० दुविहो णि०-ओघेण आदेसे० । ओघेण मिच्छ० जह० पदे०संका० सम्मामि०-पुरिस-तिण्णिसंजल० णिय० अजह. असंखे० गुणब्भ० । णवक०-अट्ठणो० णिय. अज० असंखे०भागब्भहियं । सम्मामि० जह० पदे०संका० तेरसक०-अट्ठणोक० णियमा अज० असंखे भागभहियं । पुरिसवे..
और छह नोकषायोंके उत्कृष्ट प्रदेशोंका भी संक्रामक होता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका भी संक्रामक होता है । यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है तो नियमसे अनन्तभागहीन या असंख्यातभागहीन द्विस्थानपतित अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है। इसी प्रकार पन्द्रह कषाय और छह नोकषायोंकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए।
६१५६ स्त्रीवेदके उत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक जीव मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सोलह कषाय और आठ नोकपायोंके नियमसे असंख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है। इसी प्रकार पुरुषवेद और नपुंसकवेदकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। इसी प्रकार सर्वत्र तीन वेदोंके सन्निकर्षको साधकर कहना चाहिए । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
___ इस प्रकार उत्कृष्ट सन्निकर्ष समाप्त हुआ। * सब कर्मों का जघन्य सन्निकर्ष भी साध लेना चाहिए।
६ १५७. श्रोध और आदेशके भेदसे भेदको प्राप्त हुआ जघन्य सन्निकर्ष विस्तारके साथ यहाँ पर साध लेना चाहिए । इस प्रकार इस सूत्रद्वारा शिष्योंको अर्थका समर्पण किया गया है। अब इस सूत्र द्वारा सूचित हुए अर्थके विवरणको उच्चारणाके बलसे बतलाते हैं। यथा-जघन्य सन्निकर्षका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे मिश्यात्वके जघन्य प्रदेशो का संक्रामक जीव सम्यग्मिथ्यात्व, पुरुषवेद और तीन संज्वलनों के नियमसे असंख्यातगुणे अधिक अजघन्य प्रदेशों का संक्रामक होता है। नौ कपाय और आठ नोकषायों के नियमसे असंख्यातवें भाग अधिक अजघन्य प्रदेशों का संक्रामक होता है। सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य प्रदेशोंका संक्रामक जीव तेरह कपाय और आठ नोकषायोंके नियमसे असंख्यात भाग अधिक अजघन्य प्रदेशोंका संक्रामक होता है। पुरुषवेद और तीन संज्वलनके नियमसे असंख्यातगुणा