Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा०५८] . उत्तरपयडिपदेशसंकमे समित्त
१८१ ठविदे पयदुक्कस्ससामित्तविसईकयदव्यमागन्छदि । एवं सम्मत्तस्स सामित्ताणुगमं कादूण संपहि सम्मामिच्छत्तस्स सामित्तविहासणट्ठमुत्तरसुत्तं भणइ
* सम्मामिच्छत्तस्स उकस्सो पदेससंकमो कस्स ? ६३८. सुगमं।
* जेण मिच्छत्तस्स उक्कस्सपदेसग्गं सम्मामिच्छत्ते पक्खित्तं तेणेव जाधे सम्मामिच्छत्तं सम्मत्ते संपक्खित्तं ताधे तस्स सम्मामिच्छत्तस्स उकस्सो पदेससंकमो।
६३६. एदस्स सामित्तसुत्तस्सावयवत्थपरूवणा सुगमा ति समुदायत्थविवरणमेव कस्सामो । तं जहा-जेण गुणिदकम्मंसिएण मणुसगइमागंतूण सबलहु दंसणमोहक्खवणाए अब्भुट्ठिदेण जहाकममधापवत्तापुत्रकरणाणिवोलिय अणियट्टिकरणद्धाए संखेज्जदिभागसेसे मिच्छत्तस्स उक्स्सपदेसग्गं सगासंखे०भागभूदगुणसेढिणिज्जरासहिदगुणसंकमदव्यपरिहीणं सबसंकमेण सम्मामिच्छत्ते संपक्खित्तं तेणेव मिच्छत्तुक्कस्सपदेससंकमसामिएण जाधे सम्मामिच्छत्तं सम्मत्ते पक्खित्तं ताधे तस्स सम्मामिन्छत्तविसयो उकस्सओ पदेससंकमो होइ त्ति एसो सुत्तत्थसंगहो।
* अणंताणुबंधीणमुक्कस्सो पदेससंकमो कस्स ?
द्रव्यकी इच्छासे उसके भागहाररूपसे अधःप्रवृत्तसंक्रम भागहारको भी स्थापित करना चाहिए। इस प्रकार स्थापित करने पर प्रकृत स्वामित्वका विषयभूत द्रव्य आता है। इस प्रकार सम्यक्त्वके स्वामित्वका अनुगम करके अब सम्मग्मिथ्यात्वके स्वामित्वका व्याख्यान करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
* सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम किसके होता है ? ६३८. यह सूत्र सुगम है।
* जिसने मिथ्यात्वके उत्कृष्ट प्रदेशाग्रको सम्यग्मिथ्यात्वमें प्रक्षिप्त किया वही जब सम्यम्मिथ्यात्वको सम्यक्त्वमें प्रक्षिप्त करता है तब उसके सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है।
६३६. इस स्वामित्वसूत्रकी अर्थप्ररूपणा सुगम है, इसलिए समुदायरूप अर्थका विवरण ही करते हैं । यथा-जिस गुणितकमांशिक जीवने मनुष्यगतिमें आकर अतिशीघ्र दर्शनमोहनीयकी क्षपणाके, लिए उद्यत होकर क्रमसे अधःप्रवृत्त और अपूर्वकरणको विताकर अनिवृत्तिकरणके संख्यातवें भागके शेष रहने पर अपने असंख्यातवें भागरूप गुणिश्रेणि निर्जरासहित गुणसंक्रम द्रन्यसे हीन मिथ्यात्वके उत्कृष्ट प्रदेशाग्रको सर्वसंक्रमके द्वारा सम्यग्मिथ्याव्वमें प्रक्षिप्त किया। तथा मिथ्यात्वके उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमका स्वामी वही जीव जब सम्यग्मिथ्यात्वको सम्यक्त्वमें प्रक्षिप्त करता है तब उसके सम्यग्मिथ्यात्वविषयक उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है। इस प्रकार यह सूत्रार्थसंग्रह है।
* अनन्तानुबन्धियोंका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम किसके होता है ?