Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो ६ १२६. तिरिक्खेसु मिच्छ०-सम्म०-सम्मामि० जह० पदे०संका० णत्थि अंतरं। अजह. जह० एयस०, मिच्छ० अंतोमु०, उक्क. उबड्डपोग्गलपरियट्ट । अणंताणु०४ जह० पदे०संका० णत्थि अंतरं । अज० जह० अंतोमु०, उक्क० तिण्णि पलिदो० देसूणाणि । बारसक० चदुणोक० जह. अजह० पदे०संका० णत्थि अंतरं । हस्स-रदि-अरदि-सोग-पुरिसवे० ज० पदे०संका० णस्थि अंतरं । अज० जहण्णु० एयस० । एवं पंचिंदियतिरिक्खतिय३ । णवरि मिच्छ०-सम्म०-सम्मामि० जह० पदे०संका० णत्थि अंतरं। अज. जह० एयस०, मिच्छ० अंतोमु०, उक्क० तिणिपलिदो० पुवकोडिपुध० ।
प्रमाण जानना चाहिए । दूसरे इनमें स्त्रीवेद और नपुंसकवेदका जघन्य प्रदेशसंक्रम भवके अन्तिम समयमें प्राप्त होनेसे इनके अजघन्य प्रदेशसंक्रमका अन्तरकाल नहीं बनता, इसलिए उसका निषेध किया है। तीसरे इनमें अनन्तानुबन्धी चतुष्कका जघन्य प्रदेशसंक्रम भी भवके अन्तिम समयमें प्राप्त होता है, अतः विसंयोजित अनन्तानुबन्धीके जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्तको ध्यानमें रखकर यहाँ पर इनके अजघन्य प्रदेशसंक्रमका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त कहा है ।
६ १२६. तिर्यञ्चोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्य अन्तरकाल नहीं है । अजघन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्य अन्तर एक समय हे, मिथ्यात्वका अन्तर्मुहूर्त है और सबका उत्कृष्ट अन्तर उपार्ध पुद्गल परिवर्तन प्रमाण है । अनन्तानुबन्धी चतुष्कके जघन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्य अन्तरकाल नहीं है । अजघन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्य प्रमाण है । बारह कषाय और चार नोकषायों के जघन्य और अजघन्य प्रदेशसंक्रामकका अन्तरकाल नहीं है। हास्य, रति, अरति, शोक और पुरुषवेदके जघन्य प्रदेशसंक्रामकका अन्तरकाल नहीं है । अजघन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल एक समय है। इसी प्रकार पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिकमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व के जघन्य प्रदेशसंक्रामकका अन्तरकाल नहीं है। अजघन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्य अन्तर एक समय है, मिथ्यात्वका अन्तमुहूर्त है और सबका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्य प्रमाण है।
विशेषार्थ-वहाँ पर अन्तरकालका सब स्पष्टीकरण प्रथमादि छह पृथिवियों के समान कर लेना चाहिए। जो थोड़ी-बहुत विशेषता है उसका खुलासा इस प्रकार है। तिर्यश्चोंमें स्त्रीवेद और नपुंसकवेदका जघन्य प्रदेशसंक्रम भवके अन्तिम समयमें प्राप्त होता है, इसलिए यहां पर इन प्रकृतियोंको भी बारह कषाय, भय और जुगुप्सामें सम्मिलित कर उनके दोनों प्रकारके प्रदेशसंक्रमका निषेध किया है। एक विशेषता तो यह है । दूसरी विशेषता है तियञ्चोंकी कायस्थितिकी अपेक्षासे । बात यह है कि तिर्यञ्चोंकी कायस्थिति बहुत अधिक है, इसलिए उनमें मिथ्यात्व आदि तीन प्रकृतियोंके अजघन्य प्रदेशसंक्रमका उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम अर्धपुद्गल परिवर्तन प्रमाण बन जानेसे वह उक्त कालप्रमाण कहा है। तीसरी विशेषता अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी विसंयोजनाकी अपेक्षासे । बात यह है कि तिर्यञ्चोंमें वेदकसम्यक्त्वकी अपेक्षा अनन्तानुबन्धी चककी विसंयोजनाका काल कुछ कम तीन पल्यसे अधिक नहीं है, इसलिए इनमें इन प्रकृतियों के अजघन्य प्रदेश