Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ५८ ]
उत्तरपयडिपदेससंकमे एयजीवेण अंतरं
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$ १२८. आदेसे ० गोरइय ० मिच्छ० सम्म० सम्मामि० - अनंताणु०४ जह० णत्थि अंतरं । अजह० जह० एयस०, मिच्छ० अंतोमु०, उक्क० तेत्तीसं सागरो ० देसूणाणि । बारसक० -भय-दुगु छ० जह० अजह० णत्थि अंतरं । सत्तणोक० जह० पदे०संका ० णत्थि अंतरं । अजह० जहण्णु० एयसमओ । एवं सत्तमाए । पढमाए जाव छट्टि ति एवं चैव । वरि सगट्ठिदी देखणा । इत्थिवेद ० णवुंस० जह० अजह० पदे० संका ० णत्थि अंतरं । अनंताणु ०४ अजह० जह० अंतोमु० । 1
$ १२८. देशसे नारकियोंमें मिथ्यात्त्र, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्कके जघन्य प्रदेशसंक्रामकका अन्तरकाल नहीं है। अजघन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्य अन्तर एक समय है, मिथ्यात्वका अन्तर्मुहूर्त है और सबका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागरप्रमाण है । बारह कषाय, भय और जुगुप्साके जघन्य और अजघन्य प्रदेशसंक्रामकका अन्तर है । सात नोकषायों के जघन्य प्रदेशसंक्रामकका अन्तरकाल नहीं है। अजघन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर एक समय है । इसी प्रकार सातवीं पृथिवीमें जानना चाहिए। पहली पृथिवी से लेकर छठी पृथिवी तकके नारकियों में इसी प्रकार जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि कुछ कम अपनी-अपनी स्थिति कहनी चाहिए। तथा इनमें स्त्रीवेद और नपुंसकवेदके जघन्य और अजघन्य प्रदेश संक्रामकका अन्तरकाल नहीं है । अनन्तानुबन्धीचतुष्कके अजघन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है ।
विशेषार्थ — सामान्य नारकियोंमें और प्रत्येक पृथिवीके नारकियोंमें सब प्रकृतियों के जघन्य प्रदेशसंक्रमका अन्तरकाल न होनेका कारण यह है कि इनमें इनका दोबार जघन्य प्रदेशसंक्रम सम्भव नहीं है । इसी प्रकार गतिमार्गणा के सब अवान्तर भेदों में भी जानना चाहिए । अजघन्य प्रदेशसंक्रमके अन्तरकालका खुलासा इस प्रकार है -- सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य प्रदेशसंक्रम एक समयके लिए होता है और आगे-पीछे अजघन्य प्रदेशसंक्रम होता रहता है, इसलिए तो इनके जघन्य प्रदेशसंकमका जघन्य अन्तर एक समय कहा है । तथा मिथ्यात्वका जघन्य प्रदेशसंक्रम अपने स्वामित्वके अनुसार सम्यक्त्वसे च्युत होनेके अन्तिम समयमें होता है और उसके बाद मिथ्यात्वका असंक्रामक हो जाता है, इसलिए मिथ्यात्व गुणस्थानके जघन्य काल अन्तर्मुहूर्तकी अपेक्षा इसके अजघन्य प्रदेशसंक्रमका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त प्राप्त होनेसे वह उक्त प्रमाण कहा है। इनके अजघन्य प्रदेशसंक्रमका उत्कृष्ट अन्तर काल कुछ कम तेतीस सागर कहा है सो इसे इनके अनुत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमके उत्कृष्ट अन्तरकालके समान घटित कर लेना चाहिए। उससे इसमें कोई विशेषता न होनेके कारण इसका अलगसे स्पष्टीकरण नहीं किया हैं । बारह कषाय, भय और जुगुप्साका जघन्य प्रदेशसंक्रम भवके प्रथम समयमें प्राप्त होता है, इसलिए इनके दोनों प्रकारके प्रदेशसंक्रमका अन्तरकाल नहीं बननेसे उसका निषेध किया है। सात नोकपायका जघन्य प्रदेशसंक्रम एक समयके लिए होता है, इसलिए इनके अजघन्य प्रदेशसंक्रमका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल एक समय प्राप्त होनेसे वह उक्त प्रमाण कहा है। यह सामान्य नारकियों और सातवीं पृथिवीके नारकियोंमें अन्तरकालका विचार है । अन्य पृथिवियोंमें इसे इसी प्रकार घटित कर लेना चाहिए। मात्र उनमें जो विशेषता है उसका अलग से उल्लेख किया है। बात यह है कि एक तो प्रत्येक पृथिवीके नारकियोंकी भवस्थिति अलग अलग है इसलिए जहाँ भी अजघन्य प्रदेशसंक्रमका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर कहा है वहाँ वह अपनी अपनी भवस्थिति
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