Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
२१०
जयधवलास कसायपहिदेाहुडे
[ बंधगो ६
विवरीयं गंतूण तिरिक्खेसु तिपलिदोवमिसु उववण्णो तस्स चरिमसमयणिप्पिदमाण ० जह० पदे ० संकमो | एवं पंचि ० तिरिक्खतिए । णवरि जोणिणी ० इत्थिवे ० - णत्रु सयवेद मिच्छत्तभंगो ।
०
८६. पंचिं० तिरिक्ख अपज० - मणुस अपज ० सम्म० - सम्मामि ० जह० पदे ० संक ० कस्स ? अण्णद ० खविदकम्मंसि० विवरीयं गंतूण दीहाए उब्वेल्लणद्धाए उब्वेल्लमाणग अपत्त उववण्णो, जाधे दुचरिमट्ठिदिखंडयचरिमसमयसंकामओ जादो ताधे तस्स जह० पदे०संक० । सोलसक० -भय-दुगु छा० जह० पदे ० संक० कस्स ? अण्णद ० खविदकम्मंसि० विवरीयं गंतूण अपज० उववण्णो तस्स पढमसमयउववण्णल्लयस्स जहण्णपदेस संक्रमो । सत्तणोक० जह० पदे ० संक० कस्स ? अण्णद ० खविदकम्मंसि० विवरीयं गंतूग अपज ० अंतोमु० उत्रवण्णल्लयस्स० ।
६ ६०. मणुसतिए ओघं । णवरि मणुसिणी ० पुरिसवे ० भय - दुगु छभंगो |
६१. देवेसु मिच्छ० जह० पदे० संक० कस्स ? अण्णद० खविदकम्मंसि० विवयं गंतूण चवीससंतकम्मिओ दीहाए आउट्ठदीए उववज्जिय चरिमसमयणिप्पिदमाण ० तस्स जह० पदे ० संकमो । सम्म० - सम्मामि ० - बारसक० - गणोक० तिरिक्खभंगो | णरि
नपुंसक वेदका जघन्य प्रदेशसंक्रम किसके होता है ? जो अन्यतर क्षपितकर्मशिक क्षायिकसम्यग्दृष्टि जी बिपरीत जाकर तीन पल्यकी आयुवाले तिर्यों में उत्पन्न हुआ उसके वहाँसे निकलने के अन्तिम समयमें उक्त कर्मों का जघन्य प्रदेशसंक्रम होता है। इसी प्रकार पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिक में जानना चाहिए | इतनी विशेषता है कि योनिनी तिर्यञ्चोंमें स्त्रीवेद और नपुंसकवेदके जघन्य स्वामित्वका भङ्ग मिध्यात्व के समान है ।
§ ८६. पञ्च न्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकों में सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य प्रदेश संक्रम किसके होता है ? जो अन्यतर क्षपितकमाशिक जीव विपरीत जाकर दीर्घ उद्वेलनाकालके द्वारा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलना करता हुआ अपर्याप्तकों में उत्नन्न हुआ। वह जब द्विचरम स्थितिकाण्डकका उसके अन्तिम समयमें संक्रमण करता है तब उसके उक्त कर्मो का जघन्य प्रदेशसंक्रम होता है । सोलह कषाय, भय और जुगुप्साका जघन्य प्रदेशसंक्रम किसके होता है ? जो अन्यतर क्षपितकर्माशिक जीव विपरीत जाकर अपर्याप्तकोंमें उत्पन्न हुआ, प्रथम समय में उत्पन्न हुए उशके उक्त कर्मोंका जघम्य प्रदेशसंक्रम होता है । सात नोकषायका जघन्य प्रदेशसंक्रम किसके होता है? जो श्रन्यतर क्षपितकमांशिक जीव विपरीत जाकर अपर्याप्तकों में उत्पन्न हुआ उसके वहाँ उत्पन्न होने के बाद अन्तर्मुहूर्त के अन्तिम समयमें जघन्य प्रदेशसंक्रम होता है । १०. मनुष्यत्रिक में जघन्य स्वामित्वका भङ्ग श्रधके समान है । इतनी विशेषता है कि मनुष्यनियोंमें पुरुषवेदका भङ्ग भय और जुगुप्साके समान है ।
६१. देवों में मिथ्यात्वका जघन्य प्रदेशसंक्रम किसके होता है ? जो अन्यतर क्षपितकर्मशिक जीव विपरीत जाकर चौबीस सत्कर्मके साथ दीर्घ आयुवाले देवोंमें उत्पन्न होकर वहाँसे निकलने के अन्तिम समयमें विद्यमान है उसके मिध्यात्वका जघन्य प्रदेशसंक्रम होता है । सम्यक्त्व,