Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा०५८] उत्तरपयडिपदेससंकमे सामित्त
२०६ जीविदव्बए ति मिच्छताहिमुहचरिमसमयसम्माइडिस्स जह० पदे०संक० । बारसक०भय-दुगुछाणं जह० पदे०संक० कस्स ? अण्णद० खविदकम्मंसिओ विवरीयं गंतूण णेरइएसु उबवण्णो तस्स पढमसमयउववण्णल्लयस्स जह० पदे०संकमो। पंचणोक० जह० पदे०संक० कस्स ? अण्णद० खविदकम्मंसियस्स विवरीयं गंतूण णेरइय० उववण्णस्स तस्स अंतोमुहुत्तबवण्णल्लयस्स तेसिं जह० पदे०संक० । एवं सत्तमाए ।
६८७. पढमादि जाव छट्टि ति मिच्छ०-इस्थिवे०-णवंस. जह० पदे०संक० कस्स ? अण्णद० खविदकम्मसि० विवरीयं गंतूग दीहाए आउहिदीए उज्जिदूण अंतोमुहुत्तेण सम्मत्तं पडिवण्णो। अणंताणु०चउक्क विसंजोएदण तत्थ भवविदिमणुपालिय चरिमसमयणिप्पिडिमाणयस्स तस्स जह० पदेससंकमो। सम्म० सम्मामि०-बारसक०सत्तणोक० णिरओघभंगो । अणंताणु०४ जह० पदेससंकमो कस्स ? अण्ण० खविदकम्मंसियस्स विवरीयं गंतूण दीहाए आउद्विदीए उअवजिदूण सम्मत्तं पडिवण्णो, पुणो अर्थताणु०चउक विसंजोएदूण संजुत्तो, तदो अंतोमुहुतसम्मत्तं पडिवण्गो, तत्थ भवहिदिमणुपालेदूण चरिमसमयणिप्पिदमाण० तस्स० जह० पदेससंक० ।
(८८.तिरिक्खाणं पढमपुढवीमंगो। णवरि तिपलिदोवमिएसु उववजावेयव्यो । णवरि इत्थि-णवंस० जह० पदे०संक० कस्प्त ? अण्गद० खविदकम्मंसि० खइयसम्माइट्ठी सम्यक्त्यके अन्तिम समयमें जघन्य प्रदेशसंक्रम होता है। बारह कषाय, भय और जुगुप्साका जघन्य प्रदेशसंक्रम किसके होता है ? जो अन्यतर क्षपितकर्मा शिक जीव विपरीत जाकर नारकियों उत्पन्न हुआ उसके वहाँ उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें उक्त कर्मो का जवन्य प्रदेशसंक्रम होता है। पाँच नोकषायोंका जघन्य प्रदेशसंक्रम किसके होता है ? जो अन्यतर क्षपितकर्मा शिक जीव विपरीत जाकर नारकियोंमें ऊत्पन्न हुआ उसके वहाँ उत्पन्न होकर अन्तर्मुहूर्त होने पर उसके अन्तिम समयमें उक्त कर्मो का जघन्य प्रदेशसंक्रम होता है । इसी प्रकार सातवीं पृथिवीमें जानना चाहिए।
६८७. पहली पृथिवीसे लेकर छटी पृथिवी तक नारकियों मिथ्यात्व, स्त्रीवेद और नपुंसकवेदका जघन्य प्रदेशसंक्रम किसके होता है ? जो अन्यतर क्षपितकांशिक जीव विपरीत जाकर दी आयुवाले नारकियोंमें उत्पन्न होकर अन्तमुहूर्त में सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ। पश्चात् अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विसंयोजना करके वहां भवस्थिति काल तक उसका पालन करते हुए रहा, उसके वहां से निकलनेके अन्तिम समयमें उक्त कर्मोका जघन्य प्रदेशसंक्रम होता है । सम्यक्त्व, सम्यग्यिथ्यात्व, बारह कषाय और सात नोकपायोंके जवन्य स्वामित्यका भङ्ग नारकियोंके समान है। अनन्तानुबधीचतुष्कका जघन्य प्रदेशसंक्रम किसके होता है ? जो अन्यतर क्षपितकौशिक जीव विपरीत जाकर दीर्घ आयुवाले नारकियोंमें उत्सन्न होकर सम्यक्त्वको प्राप्त हुा । पुनः अनन्तानुबन्धीचतुश्ककी विसंयोजना करके संयुक्त हुा । तदनन्तर अन्तमुहूर्तमें सम्यक्त्वको प्राप्त हो वहाँ उसका भवस्थिति काल तक पालन कर जो निकल रहा है उसके वहाँसे निकलनेके अन्तिम समयमें अनन्तानुवन्धी चतुष्कका जघन्य प्रदेशसंक्रम होता है ।
६८. तिर्यञ्चोंमें जघन्य स्वामित्वका भङ्ग पहिली पृथिवीके समान है। इतनी विशेषता है कि इन्हें तीन पल्यकी आयुवालोंमें उत्पन्न कराना चाहिए। इतनी और विशेषता है कि स्त्रीवेद और