Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा०५८ ]
उत्तरपयडिपदेससंकमे एयजीवेण कालो
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९ १०२. पढमाए जाव छट्टि त्ति मिच्छ० जह० पदे ० संका • जहण्णु० एयस० । अजह० जह० अंतोसु०, उक्क० सगट्टिदी देणा । सम्म० ओघं । सम्मामि ० - अनंताणु ०४ जह० पदे ० संका • जहण्गु० एयस० । अज० जह० एयस०, उक्क० सगट्ठिदी । एवं पंचणोक० | णवरि अज० जह० अंतोसु० । बारसक० -भय- दुगुछ० जह० पदे ० संका ० जणु ० यस० । अज० जह० जहण्णहिदी समयूणा, उक्क० उकस्सट्ठिदी । एवमित्थिबेदसय० । वरि अजह • जहण्णकस्सट्ठिदी भाणिदव्वा ।
एक समय ऐसे जीव के जानना चाहिए जो इसके उद्वेलनासंक्रममें एक समय शेष रहने पर नरकमें उत्पन्न हुआ है। तथा अनन्तानुबन्धीचतुष्कके अजघन्य प्रदेशसंक्रमका जबन्य काल एक समय ऐसे जीवके जानना चाहिए जो अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी विसंयोजनाके बाद सासादनमें आकर तथा पुनः संयुक्त होकर एक समय एक आवलिकाल तक नरकमें रहकर अन्य गतिको प्राप्त हो गया है । सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कके जघन्य प्रदेशसंक्रमका उत्कृष्ट काल तेतीस सागर स्पष्ट ही है, क्योंकि यथा योग्य मिथ्यात्व और सम्यक्त्वमें रखकर सम्यग्मिथ्यात्वका और मिथ्यात्व में रखकर अनन्तनुबन्धीचतुष्कका यह काल प्राप्त किया जा सकता है। सात नोकषायका उत्कृष्ठ काल अनन्तानुबन्धीके समान ही घटित कर लेना चाहिए। मात्र जघन्य कालमें फरक है । वात यह है कि स्त्रीवेद और नपुंसकवेदका भवस्थितिमें अन्तर्मुहूर्तकाल शेष रहने पर जघन्य प्रदेशसंक्रम होकर अन्तिम अन्तर्मुहूर्त में अजघन्य प्रदेशसंक्रम होना सम्भव है तथा पाँच नोकषायोंका नरकमें उत्पन्न होने के बाद जघन्य प्रदेशसंक्रम होने के पूर्व प्रथम अन्तर्मुहूर्त में अजघन्य प्रदेशसंक्रम होना सम्भव है, इसलिए इनके जघन्य प्रदेशसंक्रमका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त कहा है। बारह कषाय, भय और जुगुप्साका जघन्य प्रदेशसँक्रम भवके प्रथम समयमें होता है, इसलिए इनके अजघन्य प्रदेशसंक्रमका जघन्य काल एक समय कम दसहजार वर्ष और उत्कृष्ट काल तेतीस सागर कहा है। सातवें नरक में यह काल इसी प्रकार बन जाता है। मात्र वहाँ की जघन्य आय एक समय अधिक बाईस सागर है, इसलिए उनमें बारह कषाय, भय और जुगुष्माके अजघन्य प्रदेशसंक्रमका जघन्य काल बाईस सागर कहा है । इनमें से एक समय इनके जघन्य प्रदेशसंक्रमका काल घटा दिया है । तथा जो सम्यग्दृष्टि अन्तमें मिध्यादृष्टि होता है वह सातवें नरकमें अन्तर्मुहूर्त हुए बिना मरण नहीं करता, इसलिए यहाँ अनन्तामुबन्धीच तुष्कके अजघन्य प्रदेशसंक्रमका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त कहा है।
९ १०२. पहिली पृथिवीसे लेकर छठी पृथिवी तकके नारकियोंमें मिध्यात्वके जघन्य प्रदेश - संक्रामकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्य काल
मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल कुछ कम अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण है । सम्यक्त्वका भङ्ग श्रोघके समान है । सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कके जघन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण है । इसी प्रकार पाँच नोकबायका जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनके अजघन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है । वारह कषाय, भय और जुगुप्शाके जघन्य प्रदेशसंक्रामकका जधन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । श्रजघन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्यः काल एक समय कम अपनी-अपनी जघन्य स्थितिप्रमाण है और उत्कृष्ट काल अपनी-अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है । इसी प्रकार स्त्रीवेद और नपुंसकवेदका जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अजघन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्य काल अपनी-अपनी जघन्य स्थितिप्रमाण और उत्कृष्ट काल अपनी-अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण कहना चाहिए ! ।