Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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२२२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो ६ ६१०७. भवणादि जाव णवगेवजा ति मिच्छ०-पंचणोक० जह० जहण्णु० एयस० । अज० जह० अंतोमु०, + उक्क. सगढ़िदी। एवं सम्मामि०-अणंताणु०४ । णवरि अजह० जह० एयस० । सम्म० ओघं । बारसक०-भय-दुगुछ० जह० प०सं० जहण० एयस० । अजह० जह० जहण्णद्विदी समयूणा, उक्क. उकस्सहिदी। इथिवे०णस० जह० प०संका० जहण्गु० एयस० । अजह• जहण्णुक्क० जहण्णुकस्सहिदी।
६१०८. अणुद्दिसादि सबट्ठा ति मिच्छ०-सम्मामि० जह० पदे०संका० जहण्गु० एयस० । अजह० जहण्णुक्क० जहण्णुकस्सहिदी । एवमिथि०-णस० । एवं वारसक०
काल तेतीस सागर कहा है । तथा तत्प्रायोग्य देवके देव होनेके अन्तमुहूर्त बाद पाँच नोकषायोंका जघन्य प्रदेशसंक्रम होता है, इसके पहले अन्तर्मुहूर्त तक अजघन्य प्रदेशसंक्रम होता है । तथा अन्य देवोंकी पूरी पर्याय तक इनका अजघन्य प्रदेशसंक्रम सम्भव है, इसलिए यहाँ पर उक्त प्रकृतियोंके अजवन्य प्रदेशसंक्रमका जघन्य काल अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट काल तेतीस सागर कहा है । सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कका यह काल इसीप्रकार बन जाता है । मात्र जवन्य काल एक समय प्राप्त होता है सो इसका खुलासा सामान्य नारकियोंके समान कर लेना चाहिए । सम्यक्त्वका भङ्ग ओघके समान है यह स्पष्ट ही है। बारह कषाय और भय व जुगुप्साका जघन्य प्रदेशसंक्रम क्षपितकर्मा शिक नारकीके प्रथम समयमें होता है। स्त्री व नपुंसक वेदका जवन्य प्रदेशसंक्रम तेतीस सागरकी आयुवालोंके अन्तिम समयमें होता है, इसलिए बारह कषायादि उक्त प्रवृत्तियोंके अजघन्य प्रदेशसंक्रमका जवन्य काल दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट काल तेतीस सागर कहा है।
६१०७. भवनवासियोंसे लेकर नौ ग्रेवेयक तकके देवोंमें मिथ्यात्व ओर पाँच नोकषायों के जवन्य प्रदेशसंक्रामकका जवन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजधन्य प्रदेशसंक्रामकका जवन्य काल अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट काल अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण है। इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कका जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनके अजवन्य प्रदेशसंक्रामकका जवन्य काल एक समय है। सम्यक्त्वका मङ्ग ओघके समान है। बारह कषाय,भय और जुगुप्साके जवन्य प्रदेशसंक्रामकका जवन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजवन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्य काल एक समय कम जवन्य स्थितिप्रमाण है और उत्कृष्ट काल उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है । स्त्रीवेद और नपुंसकवेद के जघन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्य काल जघन्य स्थितिप्रमाण और उत्कृष्ठ काल उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है।
विशेषार्थ--भवनवासी आदि देवोंमें बारह कषाय, भय और जुगुप्साका जघन्य प्रदेशसक्रम भवके प्रथम समयमें होता है, इसलिए यहाँ इनके अजघन्य प्रदेशसंक्रमका जघन्य काल एक समय एक समय कम जघन्य स्थितिप्रमाण और उत्कृष्ट काल उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण कहा है। शेष कथन सुगम है जो अपने स्वामित्वको जानकर घटित कर लेना चाहिए।
६ १०८. अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें, मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्य काल जघन्य स्थितिप्रमाण और उत्कृष्ट काल उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है । इसी प्रकार स्त्रीवेद और नपुंसकवेदका