Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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२२४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो ६ ६११०. होउ णाम खरगसंबंधेण लद्भुकस्समावाणं मिच्छत्तादिकम्माणमंतराभावो, ण वुण सम्मत्ताणताणुबंधीणमंतराभावो जुत्तो, तेसिमखवयविसयत्वेण लद्धक्कस्सभावाणमंतरसंभवे विप्पडिसेहाभावादो ?ण एस दोसो, गुणिदकम्मसियलक्खणेणेयवारं परिणदस्स पुणो जहण्गदो वि अद्धपोग्गलपरियट्टमेत्तकालभंतरे तब्भावपरिणामो णथि ति एवंविहा. हिप्पारणेदस्स सुत्तस्स पयट्टत्तादो । एसो ताव एको उवएसो चुण्णिसुत्तयारेण सिस्साणं परूविदो । अण्णेणोवएसेण पुण सम्मत्ताणताणुबंधीणं अंतरसंभवो अस्थि ति तप्पमाणावहारणटुं उत्तरसुत्तं भणइ
ॐ अधवा सम्मत्ताणताणुबंधोणं उकस्ससंकामयस्स अंतरं केवचिरं ?
६ १११. अण्णेणोवएसेण सम्मत्ताणताणुबंधीणमुक्कस्सपदेससंकामयंतरं संभवइ । पुण केवचिरमंतरं होइ ति पुच्छा कया होइ ।
जहणणेण असंखेजा लोगा। ६११२. गुणिदकम्मसियलक्खणेणागंतूण णेरइयचरिमसमयादो हेट्ठा अंतोमुहुत्तमोसरिय पढमसम्मतमुप्पाइय जहावुतपदेसे सम्मत्ताणताणुबंधीणमुक्कस्सपदेससंकमस्सादि
६ ११०. शंका-मिथ्यात्व आदि कर्मोका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम क्षपणा करनेवाले जीवके होनेके कारण इनके उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमका अन्तर न होबो यह ठीक है। किन्तु सम्यक्त्व और अनन्तानुवन्धीचतुष्कके उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमके अन्तरका अभाव युक्त नहीं है, क्योंकि इनका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम क्षपकको विषय नहीं करता, इसलिए उनके उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमका अन्तर सम्भव होनेसे उसका निषेध नहीं बनता ?
समाधान—यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि गुणितकर्मा शिक लक्षणसे एक बार परिणत हुए जीवके पुनः जघन्य रूपसे मी उसके योग्य परिणाम अर्धपुग्द्ल परिवर्तनप्रमाण कालके भीतर नहीं होता इस प्रकार ऐसे अभिप्रायसे यह सूत्र प्रवृत्त हुआ है।
यह एक उपदेश है जो सूत्रकारने शिष्योंके लिए कहा है। परन्तु अन्य उपदेशके अनुसार सम्यक्त्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कके उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमका अन्तर सम्भव है, इसलिए उसके प्रमाणका अवधारण करनेके लिए आगे का सूत्र कहते हैं
* अथवा सम्यक्त्व और अनन्तानुबन्धियोंके उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रामकका अन्तरकाल कितना है ?
६ १११. अन्यके उपदेशानुसार सम्यक्त्व और अनन्तानुबन्धियोंके उत्कृष्ट प्रदेशासंक्रामकका अन्तर सम्भव है । परन्तु वह कितना है यह पृच्छा इस सूत्र द्वारा की गई है।
* जघन्य अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है।
६११२. गुणितकर्मा शिक लक्षणसे आकर नारकीके अन्तिम समयसे पीछे अन्तर्मुहूर्त रहकर अर्थात् नारकीके अन्तिम समयके प्राप्त होनेके अन्तर्मुहूर्त पहिले प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्नकर यथोक्त स्थानमें सम्यक्त्व और अनन्तानुबन्धियोंके उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम पूर्वक उसका अन्तर करके अनुत्कृष्ट