Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा०५८] ___ उत्तरपयडिपदेससंकमे एयजीवेण कालो
६१०५. मणुसतिए मिच्छ० सम्म तिरिक्खभंगो। सम्मामि०-सोलसक०णवणोक० जह० पदे०संका० जहण्ण० एयस० । अजह० जह० एयस०,+ उक० तिण्णि पलिदो० पुवकोडिपुत्तेणब्भहियाणि ।
६१०६. देवेसु मिच्छ० पंचणोक० जह० पदे०संका० जहण्णु० एयसमओ। अजह. जह० अंतोमु०, उक्क० तेत्तीसं सागरो० । एवं सम्मामि०-अणताणु०४। णवरि अज० जह० एयस० सम्म० ओघं । बारसक०-चदुणोक० जह० पदे०संका० जहण्ण० एयस० । अजह० जह० दसबस्ससहस्साणि, उक० तेत्तीसं सागरोवमं ।
भवग्रहणप्रमाण और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है। इनमें सन्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलनाकी अपेक्षा एक समय तक संक्रम हो यह भी संभव है और कायस्थितिप्रमाण काल तक संक्रम होता रहे यह भी सम्भव है, इसलिए यहाँ इनके अजवन्य प्रदेशसंक्रमका जघन्य काल एक समय
और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त कहा है। सात नोकषायोंका जघन्य प्रदेशसंक्रम इन जीवोंमें अन्तमुहूर्त के बाद प्राप्त होता है । इसके पहिले अजघन्य प्रदेशसंक्रम होता है। तथा जिसके जघन्य प्रदेशसंकम नहीं होता उसके कायस्थितिप्रमाण काल तक इनका अजघन्य प्रदेशसंक्रम होता रहता है । यतः ये दोनों काल अन्तर्मुहूर्तप्रमाण हैं, अतः यहाँ इनके अजघन्य प्रदेशसंक्रमका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त कहा है।
६१०५ मनुष्यत्रिकमें मिथ्यात्व और सन्यक्त्वका मङ्ग तिर्यश्चोके समान है । सम्यग्मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंके जघन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्य है।
विशेषार्थ—मनुष्यत्रिकमें मिथ्यात्व और सम्यक्त्वके जघन्य और अजघन्य प्रदेशसंक्रमका काल तियञ्चोंके समान बन जानेसे उनके समान कहा है। सम्यमिथ्यात्वके अजघन्य प्रदेशसंक्रमका जघन्य काल एक समय उद्वेलनाकी अपेक्षा और सोलह कषाय, भय व जुगुप्साके अजघन्य प्रदेश1. मका जघन्य काल एक समय उपशम श्रेणिसे उतरते समय एक समय इनका संक्रम कराकर
मरणकी अपेक्षा बन जाता है, इसलिए यहाँ पर इन प्रकृतियोंका यह काल एक समय कहा है। तथा उत्कृष्ट काल कायस्थितिप्रमाण है यह स्पष्ठ है। यहाँ इतना पिशेष जानना चाहिए कि सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट काल इसकी सत्तावाले जीवको यथायोग्य सम्यक्त्व और मिथ्यात्वमें रख कर यह काल ले आना चाहिए।
६१०६. देवोंमें मिथ्यात्व और पाँच भोकषायोंके जघन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्य काल अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट काल तेतीस सागर है। इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कंका जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनके अजघन्य प्रदेशसंक्रमका जघन्य काल एक समय है। सम्यक्त्वका भङ्ग
ओघके समान है । वारह कषाय और चार नोकषायोंके जघन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्य काल दस हजार वर्ष है और उत्कृष्ट काल तेतीस सागरप्रमाण है।
विशेषार्थ देवोंमें सम्यक्त्वका जयन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल तेतीस सागर है, इसलिए तो इनमें मिथ्यात्वके अजघन्य प्रदेशसंक्रमका जघन्य काल अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट