Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ५८ ]
उत्तरपयडिपदेशसंक मे एयजीवेण कालो
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पदे० संका • जहण्णु० एयसमओ । अणु० जह० एयस०, उक्क० तिण्णि पलिदो ० सादिरेयाणि । सोलसक० - णवणोक० उक्क० पदे ० संका० जहण्णु० एयस० । अणु० जह० खुद्दाभवग्गहणं, अणंताणु०४ एयस०, उक्क० सव्वेसिमणंतकालमसंखेजा पोग्गलपरियट्टा । एवं पंचिदियतिरिक्खतिय० । णवरि जम्हि अनंतकालं तम्हि तिष्णि पलिदो० पुन्त्रकोडिधत्तेभहियाणि । सम्मा मि० अणु० जह० एयस ०, उक० तिण्णि पलिदो० पुव्वको डिपुध० ।
९ ६७. पंचिंदियतिरिक्खअपज० - मणुस अपज्ज० सत्तावीसं पयडीणं उक्क० पदे०
सम्यक्त्वका भङ्ग नारकियोंके समान है । सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रामकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अनुत्कृष्ट प्रदेशसंक्रामकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल साधिक तीन पल्य है । सोलह कषाय और नौ नोकषायोंके उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रामकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अनुत्कृष्ट प्रदेशसंक्रामकका जघन्य काल क्षुल्लकभवग्रहणप्रमाण है, अनन्तानुबन्धीचतुष्कका एक समय है तथा सबका उत्कृष्ट काल अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तनोंके बराबर है । इसी प्रकार पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिकमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि जहाँ पर अनन्त काल कहा है वहाँ पर पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्य कहना चाहिए | तथा सम्यग्मिथ्यात्व के अनुत्कृष्ट प्रदेशसंक्रामकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्य है ।
विशेषार्थ — तिर्यञ्चों में सम्यक्त्वका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल कुछ कम तीन पल्य है, इसलिए इनमें मिथ्यात्वके अनुत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमका जघन्य काल अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट काल कुछ कम तीन पल्य कहा है । सम्यक्त्वका भङ्ग नारकियोंके समान है यह स्पष्ट ही है । सम्यग्मिथ्यात्वके अनुत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमके जघन्य काल एक समयका खुलासा नारकियोंके समान कर लेना चाहिए । उत्कृष्ट काल साधिक तीन पल्य कहनेका कारण यह है कि उत्तम भोगभूमिमें वेदक सम्यक्त्वके साथ रखकर तो कुछ कम तीन पल्य काल प्राप्त हो ही जाता है। साथ ही इसके पूर्वतिर्थ पर्याय में सम्यग्मिथ्यात्वकी सत्ता के साथ यथासम्भव अधिक से अधिक काल तक रखे और इस प्रकार साधिक तीन पल्य कास ले आवे । तिर्यञ्चोंमें रहनेके जघन्य काल और उत्कृष्ट कालको ध्यान में रख कर वहाँ सोलह कषाय और नौ नोकषायोंके अनुत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमका जधन्य काल क्षुल्लक भवग्रहणप्रमाण और उत्कृष्ट काल अनन्तकाल कहा है । मात्र अनन्तानुबन्धीचतुष्कका जघन्य काल एक समय नारकियोंके समान यहाँ भी बन जाता है, इसलिए उसका अलग से निर्देश किया है | पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिकमें उत्कृष्ट कार्यस्थिति पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक तीन पल्य होनेसे उनमें अनन्तकालके स्थानमें इसे कहना चाहिए यह सूचना की है। इनके सम्यग्मिथ्यात्व के अनुत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमके उत्कृष्ट कालका निर्देश भी अलगसे इसी दृष्टिसे किया है । शेषं कथन सुगम है ।
६७. पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च अपर्याप्तकोंमें और मनुष्य अपर्याप्तकों में सत्ताईस प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रामकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अनुत्कृष्ट प्रदेशसंक्रामकका