Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ५८ ]
उत्तरपयडिपदेससंकमे सामित्तं
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§ ५६. एवमोघेण सब्त्रकम्माणमुकस्ससामित्तविणिण्णयं सुत्ताणुसारेण काढूण एत्तो एदेण सुत्तेण सूचिदादेसपरूवणट्ठ 'मुच्चारणागंथमिहाणुवत्तइस्सामो । तं जहा - सामित्तं दुविहं - जहणमुकस्यं च । उक्क० पयदं । दुविहो णिदेसो । ओघं मूलगंथसिद्धं । आदेसेण रइय० मिच्छ० -सम्मामि० उक० पदेससंकमो कस्स ? अण्णदरस्स गुणिदकम्म सियस्स जो . अंतोमुहुत्तमोसकिऊण सम्मत्तं पडिवत्रिय गुणसंकमेण सव्वुक्कस्सियाए पूरणाए पूरिदो से काले विज्झादं पडिहिदि ति तस्स उकस्सओ पदेससंकमो । सम्मत्त० सो चेव आलावो कायन्त्रो | णरि विज्झादं पडिदूतोमुहुत्तेण मिच्छत्तं गदो तस्स पढमसमयमिच्छादिट्ठिस्स उक्कस्सपदेससंकमो । जइ एवं सम्मामिच्छत्तस्स वि सम्मत्तेग सह सामितणिद्देसो कायव्वो, अंगुलस्सासंखेज दिमाग पडिभागिय विज्झादगुणसंकमादो अधापवत्तसंकमदव्त्रस्सा संखेजगुणदंसणादोति । सचमेदं, जइ सम्मामिच्छत्तविसए विज्झादगुणसंकमो अंगुलस्सासंखेजभागपडिभागिओ त्ति एत्थ विवक्खिओ होज । णवरि ण तहाविहो एत्थ उच्चारणा हिप्पायो । किंतु मिच्छत्तस्सेव पलिदो ० असंखे ० भागमेत्तो सम्मामिच्छत्तगुणसंकमभागहारो ति एवंविहो उच्चारणाहिप्पाओ, अधापवत्तसंकमपरिहारेण तव्त्रिसयसा मित्तविहाणण्णहा णुववत्तीदो ।
५६. इस प्रकार सूत्रानुसार ओघ से सब कर्मों के उत्कृष्ट स्वामित्वका निर्णय करके आगे इस सूत्र सूचित हुए आदेशका कथन करनेके लिए यहाँ पर उच्चारणाग्रन्थको बतलाते हैं । यथा - स्वामित्व दो प्रकारका है— जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है । निर्देश मूलग्रन्थसे सिद्ध है । प्रदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट 'प्रदेशसंक्रम किसके होता है ? जो अन्यतर गुणितकर्माशिक जीव अन्तर्मुहूर्त बाद सम्यक्त्वको प्राप्तकर गुणसंक्रमके द्वारा सबसे उत्कृष्ट पूरणा के रूपसे पूरित हो अनन्तर समयमें विध्यातसंक्रमको प्राप्त होगा उसके उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है । सम्यक्त्व प्रकृतिका वही आलाप करना चाहिए । इतनी विशेषता है कि विध्यातसंक्रमको प्राप्त कर जो अन्तर्मुहूर्त में मिथ्यात्व में गया उस प्रथम समयवता मिथ्यादृष्टिके उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है ।
शंका-यदि ऐसा है तो सम्यग्मिथ्यात्व के भी स्वामित्वका निर्देश सम्यक्त्वके साथ करन चाहिए, क्योंकि अङ्गलके असंख्यातवें भागरूपसे प्रतिभागको प्राप्त हुए विध्यातसंक्रम और गुणसंक्रमसे अधःप्रवृत्तसंक्रमका द्रव्य असंख्यातगुणा देखा जाता है ?
समाधान —यह सत्य है, यदि सम्यग्मिथ्यात्वके बिषयमें विध्यातसंक्रम और गुणसंक्रम यहाँ पर अङ्ग सख्यातवें भागका प्रतिभागी विवक्षित होता । परन्तु उस प्रकारका यहाँ पर उच्चारणाका अभिप्राय नहीं है । किन्तु मिध्यात्वके समान पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण समय - ग्मिन्यात्वका गुणसंक्रमभागहार है इस तरह इस प्रकारका उच्चारणाका अभिप्राय है, क्योंकि अन्यथा अधः प्रवृत्तसंक्रमके परिहार द्वारा तद्विषयक स्वामित्वका विधान नहीं बन सकता। चूर्णिसूत्र के
१. ता० प्रतौ यस्स ( गट्ठ ) मुच्चारणा-, श्रा० प्रतौ णस्स नुच्चारणा- इति पाठः ।