Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ५८ ]
उत्तरपयडिपदेससंकमे सामित्त
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जो गुणिक मंसिओ ईसा गिएसु एवंस • पूरेदूण असंखेज्जवरसाउएसु पलिदो० असंखे ०भागमेत्तकालेण इत्थिवेदं पूरेदूण सम्मत्तं लङ्गूण पलिदोवमट्ठिदिएस देवेसु उववण्णो, तत्थ य भवट्ठिदिमणुपालेदूण अंतोमु० कम्मं गुणेहदि ति अनंतापु० चउक त्रिसंजोएदि तस्स चरिभे द्विदिखंडए चरिमसमयसंका ० तस्स उक० पदे ० संक० | णकुंसयवेद ० उक्क० पदे० संक० कस्स ? जो गुणिदकम्मंसिओ ईसाणिगेसु णवुंसवे० अंतोमु० पूरेहदि ति सम्मत्तं पडिवण्णो पुणो अताणु ० चउक० विसंजोएदि तस्स चरिमेट्ठिदिखंडए चरिमसमय संका ० ० तस्स उक्क० पदेससंक० । एवं सोहम्मीसाणे । भवण वाणवें - जोदिसि - सक्कुमारादि जाव सहस्सारे ति पढमपुढविभंगो ।
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६२. आणदादि णवगेवज्जा त्ति मिच्छ० -सम्मामि० उक्क० पदे ० संक० कस्स १ अण्णद ० जो गुणिदकम्मंसिओ संखेज्जतिरियभवं काढूण मणुसेसु उबवण्णो, सव्चलहुं दव्त्रलिंगी जादो, अंतोमुहुत्तं मदो देवो जादो। अतोमु० सम्मत्तं पडिव० सव्बुकस्सगुणसंकमेण संकामेण से काले विज्झादं पडिहदि ति तस्स उक्क० पदे० संक० । सम्म० सो चैत्र भंगो । वरि उवसंतद्धाए पुण्णाए मिच्छत्तं गदो तस्स पढमसमयमिच्छादिट्ठिस्स उक्क० पदे ० संक० | सोलसक० छण्णोक० मिच्छत्तभंगो । णवरि सम्मत्तं पडिवजिऊण
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संक्रम किसके होता है ? जो गुणितकमाशिक जीव ऐशान कल्पके देवों में नपुंसकवेदको पूरण करके पुनः असंख्यात वर्षकी आयुवालोंमें पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण कालके द्वारा स्त्रीवेदको पूरण करके तथा सम्यक्त्वको प्राप्त करके पल्यप्रमाण स्थितिवाले देवोंमें उत्पन्न हुआ और बहाँ पर भवस्थितिका पालन कर अन्तर्मुहूर्तमें कर्मको गुणितकर्माशिक करगा कि इसी बीच - अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी विसंयोजना करता है उसके अन्तिम स्थितिकाण्डकके अन्तिम समयमें उत्कृष्ट प्रदेश संक्रम होता है । नपुंसक वेदका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम किसके होता है ? जो गुणितकमांशिक जीव ऐशान कल्पके देवोंमें नपुंसक वेदको अन्तर्मुहूर्त में पूरण करेगा कि इसी बीच सम्यक्त्वको प्राप्त करके अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी विसंयोजना करता है उसके अन्तिम स्थितिकाण्डकके संक्रम करने के अन्तिम समय में उत्कृष्ठ प्रदेशसंक्रम होता है । इसी प्रकार सौधर्म और ऐशान कल्पमें जानना चाहिए । भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी और सनत्कुमारसे लेकर सहस्रार कल्प तकके देवोंमें पहिली पृथिवीके समान भङ्ग है ।
§ ६२. ध्यानरत कल्पसे लेकर नौ प्रवेयक सकके देवोंमें मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम किसके होता है ? जो गुणितकर्मशिक जीब तिर्यध्चोंके संख्यात भोंको करके मनुष्व में उत्पन्न हो अतिशीघ्र द्रव्यलिङ्गी हो गया । पुनः अन्तमुहूर्तमें मरकर श्रानतादि कल्पोंका देव हो गया । पश्चात् अन्तर्मुहूर्त में सम्यक्त्वको प्राप्त हो सबसे उत्कृष्ट गुणसंक्रमके द्वारा संक्रम करके अनन्तर समयमें विध्यातको प्राप्त होगा उसके विध्यातको प्राप्त होनेके अनन्तर पूर्व समय में उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है । सम्यक्त्वका वही भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि उपशमसम्यक्त्वके कालके पूर्ण होने पर मिथ्यात्वमें गया उस प्रथम समयवर्ती मिध्यादृष्टिके उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है । सोलह कषाय और छह नोकषायोंका भङ्ग मिथ्यात्वके समान है । इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्वको प्राप्तकर जो अनन्तर अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी विसंयोजना करता है उसके अन्तिम स्थितिकाण्डकका
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