Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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१६८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो६ एदम्हादो चेव सुत्तादो। अंतोमुहुत्तमेत्तगुणसेढिणिजरालाहसंगहणटुं च अधापवत्तकरणचरिमसमए सामित्तविहाणं संजुत्तं पेच्छामहे ।
६७. एत्थ सामित्तविसईकयदव्वपमाणाणयणमेवं कायब। तं जहा—दिवड्डगुणहाणिगुणिदेइ दियसमयपत्रद्धं ठविय तत्तो उक्कड्डिददव्यामिच्छामो ति तस्सोकड्डक्कड्डणभागहारो अंतोमुहुत्तोवट्टिदो भागहारत्तेण ठवे ययो । पुणो उक्कडिददव्वादो सागरोवमपुधत्ताहियवेछावट्ठिसागरोवमकालभंतरे गलिदसेसदबमिच्छिय तकालभंतरणाणागुणहाणिसलागाणमण्णोण्णब्भत्थरासी भागहारो ठवेयव्यो। एवं ठविदे सामित्तसमयगलिदसेसासेसमिच्छत्तदव्यमागच्छइ । एत्तो विज्झायसंकमेण संकामिददव्यमिच्छामो ति अंगुलस्सासंखेजदिभागमेतो विज्झादसंकमभागहारो अवहारभावेण ठधेययो । एवं ठविदे सामित्तविसइकयजहण्णदत्रमागच्छइ ।
सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं जहएणो पदेससंकमो कस्स ? - ६६८. सुगमं । * एसो चेव जीवो मिच्छत्तं गदो, तदो पलिदोवमस्स असंखेवदिभागं
अपेक्षा न करके होता है।
शंका—यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान—इसी सूत्रसे जाना जाता है । तथा अन्तमुहूर्त काल तक होनेवाली गुणश्रेणिनिर्जराके लाभका संग्रह करनेकेलिए अधःप्रवृत्तकरणके अन्तिम समयमें स्वामित्वका कथन संयुक्त है ऐसा हम समझते हैं। .
६६७. यहाँ पर स्वामित्वक विषयभावको प्राप्त हुए द्रव्यका प्रमाण इस प्रकार लाना चाहिए। यथा-डेढ़ गुणहानिसे गुणित एकेन्द्रियसम्बन्धी समयप्रबद्धको स्थापित कर उसमेंसे उत्कर्षणको प्राप्त हुए द्रव्यकी इच्छा करके उसका अन्तमुहतसे भाजित अपकर्षण-उत्कर्षण भागहार भागहाररूपसे स्थापित करना चाहिए। पुनः उत्कर्षित द्रव्यमेंसे सागरपृथक्त्व अधिक दो छयासठ सागरप्रमाण कालके भीतर गलकर शेष बचे हुए द्रव्यको लानेकी इच्छासे उस कालके भीतर जितनी नाना गुणहानिशलाकाएँ हों उनकी अन्योन्याभ्यस्तराशिको भागहाररूपसे स्थापित करना चाहिए। इस प्रकार स्थापित करने पर स्वामित्व समयमें गलकर शेष बचा हुआ मिथ्यात्वका समस्त द्रव्य आता है । इसमेंसे विध्यातसंक्रमके द्वारा संक्रमको प्राप्त हुए द्रव्यको लानेकी इच्छासे अङ्गलके असंख्यातवें भागप्रमाण विध्यातसंक्रमभागहारको भागहाररूपसे स्थापित करना चाहिए। इस प्रकार स्थापित करने पर स्वामित्वके विषयभावको प्राप्त हुआ जघन्य द्रव्य आता है।
* सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य प्रदेशसंक्रम किसके होता है ? ६६८. यह सूत्र सुगम है। * यही जीव मिथ्यात्वमें गया। अनन्तर पन्यके असंख्यातवें भागप्रमाण कालको